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हो गई। इस प्रकार गुरु अथवा पिता से समस्त विद्या प्राप्त दोनों पुत्रियाँ साक्षात् सरस्वती का अवतार-सा प्रतिभासित होने लगीं।
भगवती सूत्र एक प्राचीनग्रंथ है। उसमें अनेक प्राचीन उद्धरण हैं। विद्वानों ने उसकी प्राचीनता असंदिग्ध रूप से स्वीकार की है। उसमें तीर्थंकर ऋषभदेव के सन्दर्भ भी संकलित हैं। एक स्थान पर लिखा है कि ऋषभदेव ने दाहिने हाथ से ब्राह्मी को लिपिज्ञान और बाँये हाथ से सुन्दरी को अंक ज्ञान कराया___ "लेणं लिवीविहाणं जिणेण बंभीए दाहिण करेण ।
गणियं संखाणं सुरन्दरीए वामेण उवइटठं ॥" २ इसकी संस्कृत व्याख्या अभिधान राजेन्द्र कोश के 'उसभ' प्रकरण में इस प्रकार दी हुई है--
“लेखनं लेखो नाम सूत्रे नपुंसकता प्राकृतत्त्वाल्लिपिविधानं तच्च जिनेन भगवता वृषभस्वामिना ब्राह्म या दक्षिणकरेण प्रदर्शितमतएव तदादित आरभ्य वाच्यते । गणितं नौमकद्वित्र्यादि संख्यानं तच्च भगवता सुन्दर्या वामकरेणोपदिष्टमत एव तत्पर्यन्तादारभ्य गण्यते ।"3
इसी प्रकरण में एक अन्यत्र स्थान पर लिखा है कि भगवान् ने दाहिने हाथ से 'ब्राह्मी' को लिपिज्ञान कराया, तो उसी के नाम पर लिपि को भी 'ब्राह्मी' कहने लगे और 'ब्राह्मी लिपि' नाम प्रचलित हो गया। वह उल्लेख है, "लेखो लिपिविधानं तदक्षिण हस्तेन जिनेन ब्राह्म या दर्शितम् इति । तस्माद् ब्राह्मी नाम्नी सा लिपिः ।" इसी प्रकार भावसेन विद्य ने 'कातन्त्ररूपमाला' में लिखा है-"तेन ब्राह्य कुमार्यै च कथितं पाठहेतवे । कालापकं तत्कौमारं नाम्ना शब्दानुशासनम् ।” ५ यहाँ तेन से तात्पर्य श्री ऋषभदेव से है, जैसा कि उन्होंने अन्त में लिखा है-"तस्मात् श्री ऋषभादिष्टमित्येव प्रतिपद्यताम् ।" ६ अभिधान राजेन्द्रकोश के पाँचवें भाग में, जहाँ पुस्तकाक्षरविन्यासरूप लिपि और उसके १८ भेदों की बात लिखी है, वहाँ ही नाभेयजिन अर्थात् नाभि के पुत्र ऋषभजिन की स्वसुता ब्राह्मी के नाम पर इस लिपि का नाम ब्राह्मी लिपि पड़ा, ऐसा भी लिखा है । वह लेख है--
१. वही, १६/११६, ११७. २. देखिए भगवती सूत्र, उद्धृत-आभिधानरजेन्द्रकोष, भाग २, पृष्ठ ११२६. ३. अभिधानराजेन्द्रकोश, 'उसभ' प्रकरण, भाग २, पृष्ठ ११२६. ४. देखिए वही. ५. श्री भावसेन वैविद्य, कातन्त्ररूपमाला, १/४. ६. वही, १७.
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