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" लिपि: पुस्तकाssaौ अक्षरविन्यासः सा चाष्टादशप्रकारापि श्रीमन्नाभेयजिनेन स्वसुताया ब्राह्मी नामिकाया दर्शिता, ततो ब्राह्मी नाम इत्यभिधीयते । १
'आवश्यक नियुक्ति भाष्य' में दाहिने हाथ से ब्राह्मी को लिपिज्ञान कराये जाने की बात का उल्लेख प्राप्त होता है । उसमें लिखा है- "लहें लिविवीहाणं जिणेण बंभीइ दाहिण करेणं । " २ आवश्यक चूर्णि के पृष्ठ १५६ पर लिखा है कि इसी ब्राह्मी पुत्री के नाम पर लिपि का नाम भी ब्राह्मी पड़ा। ऐसी ही बात समवायांगसूत्र और विशेषावश्यक भाष्य में भी कही गई है । वहाँ तो ब्राह्मी लिपि के भेदों का विवेचन भी प्राप्त होता है - ऐसा विवेचन जो बौद्धों के ललित विस्तर के अतिरिक्त, अन्यत्र देखने को नहीं मिलता ।
अपभ्रंश के प्रसिद्ध कवि पुष्पदन्त ने 'महापुराण' की रचना की थी । यह ग्रंथ डा. पी. एल. वैद्य के सम्पादन में माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रंथमाला, बम्बई से १९३७-४१ ई. में निकल चुका है। इसे 'तिसट्टिमहापुरिसगुणालंकारु' भी कहते हैं । इसमें ६३ शलाका पुरुषों के चरित्र निबद्ध हैं । अतः इसमें तीर्थंकर ऋषभदेव और उनके पुत्र-पौत्रादिकों का भी विवेचन है। पं. नाथूराम प्रेमी ने पुष्पदन्त का साहित्यिक काल शक संवत् ८८१ से ८९४ तक माना है । उन्होंने लिखा है - " शक संवत् ८८ १ में पुष्पदन्त मेलपाटी में भरत महामात्य से मिले और उनके अतिथि हुए । इसी साल उन्होंने महापुराण शुरू करके उसे शक संवत् ८८७ में समाप्त किया । 3 पुष्पदन्त विदर्भान्तर्गत रोहड़खेड़ गाँव के रहने वाले थे। आज भी यह गाँव धामण गाँव से खामगांव के मार्ग में आठवें मील पर अवस्थित है ।
इस ग्रंथ में भी ब्राह्मी वाला उल्लेख है। भगवान् ऋषभदेव ने दाहिने और AT Tथ से ब्राह्मी और सुन्दरी दोनों कन्याओं को अक्षर और गणित की शिक्षा दी । वहाँ लिखा मिलता है-
" भावें गमसिद्धं पभणेपणु दाहिणवाभकरेहिं लिहेपिणु । दोहिं मिणिम्मलकंचन वण्णहं अक्खरगणियां कण्णहं ।। "
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अर्थ -- भावपूर्वक सिद्ध को नमस्कार कर भगवान् ऋषभदेव ने दोनों ही निर्मल कंचनवर्णी कन्याओं को, दायें और बायें हाथ से लिखकर अक्षर और गणित बताया ।
१. अभिधानराजेन्द्रकोश, पंचम भाग, पृष्ठ १२८४.
२. आवश्यकनिर्युक्तिभाष्य, उद्धृत - अभि. राजेन्द्रकोश, भाग ५, पृ. १२८४.
३. पं० नाथूराम प्रेमी, जैन साहित्य और इतिहास, पृष्ठ २५०.
४. वही, पृष्ठ २२७-२२८.
५. पुप्फयंतु, महापुराण, ५ / १८- प्रथम दो पंक्तियां.
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