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________________ में लिखा है, "मलिनाम्बुः काचनिका मेला धातुपल: पुमान् । क्लीबे पत्रानं च स्यात् ।।" दवात के लिए कोषकल्पतरु में 'मेलान्धर्मषिकूपिका'१ आया है । इसके अनुसार मेलान्ध और मषिकपिका दवात को कहते थे। इसके अतिरिक्त मेलानन्दा, मेलांधुका, मसिपात्र और मसिभांड आदि का भी विभिन्न ग्रंथों में प्रयोग हुआ है। - लेखनी के लिए वर्णक शब्द का प्रयोग होता था । अमरकोष और मेदिनीकोष दोनों में 'वर्णक' ही आया है। जहाँ रंग भरने की बात होती थी, वहाँ लेखनी को अमरकोष में “एषिका तुलिकासमे" लिखा है। इसका एक तीसरा नाम शलाका भी था । जैन ग्रंथों में उसका अधिकाधिक प्रयोग हुआ है। मालती माधव में-'अयस्कान्तमणि शलाका' आया है। दशकुमार चरित में वर्णवर्तिका शब्द का प्रयोग मिलता है। जहाँ शिलास्तम्भों पर लेखन का प्रश्न था, वहाँ छैनी से काम लिया जाता था। लेखनी शब्द सभी में प्रचलित था। लिपि को प्राचीनता पाश्चात्य विद्वान् भारतीय लिपि की प्राचीनता के सन्दर्भ में पहला उद्धरण अशोक के शिलालेखों को मानते हैं। इसके पूर्व का कोई उद्धरण उन्हें प्राप्त नहीं हुआ था। अशोक के शिलालेखों का समय ईसा-पूर्व तीन सौ वर्ष कूता जाता है। श्री गौरीशंकर हीराचन्द ओझा ने अपनी प्राचीन लिपिमाला' में अशोक से भी पूर्व के दो उद्धरण प्रस्तुत किये हैं। पहला है-नैपाल की तराई में स्थित पिप्रावा नामक स्थान के एक स्तूप के भीतर से प्राप्त ताम्रपत्र पर खुदा एक लेख । इस पात्र में बुद्धदेव की अस्थियाँ रखी हुई थीं और उसके ऊपर एक लेख खुदा हुआ था-"इदं शरीर निधानं बुद्धस्य भगवतः शाक्यानां ।" इस ताम्रपत्र का समय ईसा-पूर्व चार सौ वर्ष माना गया है। इस प्रसंग में डॉ. वासुदेवसिंह ने अपने ग्रन्थ 'प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन' में लिखा है. “ऐसे पात्रों पर उपलब्ध लेखों में पीपरावा (बस्तीउत्तरप्रदेश) का पात्र-लेख सब-से-पुराना है, जिस पर अशोक से पूर्व लिपि में लेख अंकित है।" १. कोषकल्पतरु, देखिए 'धी' वर्ग. २. अमरकोष, ३/५/३८, मेदिनीकोष, १३/१५३-१५४. ३. अमरकोष, ३/१०/३२. ४. मालती माधव, १/२. ५. दशकुमारचरित, उच्छ्वास २. ६. प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, पृ. ३१-३२. ७. वही, पृ. ४२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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