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________________ का यह कथन कि लाल अक्षरों के लिए खुन का प्रयोग होता था, ठीक नहीं है। जैन और अजैन कोई ग्रंथ ऐसा नहीं है, जिसमें खून का प्रयोग किया गया हो। स्याही के अभाव में भी रुधिर का प्रयोग ग्रंथ लेखन में नहीं हुआ। प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए कुछ साथी रुधिर से हस्ताक्षर करते थे और वह प्रतिज्ञा भी रुधिर से लिख लेते थे। भारत के अति प्राचीन काल में लाल स्याही के बदले सिंदूर और हिंगुल का प्रयोग होता था। मजीठ का प्रयोग भी अधिक किया जाता था। स्याही के संदर्भ में ऐतिहासिकता की बात करते हुए ब्हलर ने लिखा है, "निआर्कस और कटिस के इस कथन से कि हिन्दू रुई के कपड़े और पेड़ की छाल, अर्थात् भोजपत्र पर लिखते थे-प्रतीत होता है कि वे ईसवी-पूर्व चौथी शती में स्याही का प्रयोग करते थे। अशोक के आदेश लेखों में कभी-कभी कुछ अक्षरों में फन्दों के स्थान पर बिन्दिया मिलती हैं। इससे भी यही निष्कर्ष निकलता है ।" २ इसके अतिरिक्त एक प्राचीन उदाहरण अंधेर का धातुकलश भी है, जिस पर स्याही से अक्षर लिखे हुए हैं । यह ईसवी-पूर्व दूसरी शती का उदाहरण है। ईसा पूर्व लिखे गये गृह्य सूत्रों में भी मषि शब्द का प्रयोग हुआ है। मषि शब्द 'मष् हिंसायाम्' से बना है । इसका अर्थ है--मसलना, जिसको अंग्रेजी में Crushing अथवा Poundiog भी कहते हैं। भारत के कुछ भागों में स्याही के लिए 'मेला' शब्द का प्रयोग हुआ है । बेनफे, हिक्स और बेबर ने मषि के लिए एक ग्रीक व्युत्पत्ति ढूंढने का प्रयास किया है, किन्तु व्हूलर का कथन है कि मेला शब्द प्राकृत के 'मैल' से बना है, जिसका अर्थ होता है गंदा, काला। डॉ. राजबली पाण्डेय का मत है कि यह संस्कृत की धातु 'मेल' से बना है, जिसका अर्थ है-सम्मिश्रण । ६ स्याही, पानी, गोंद और शक्कर आदि मिला कर ही तैय्यार होती है । मेला शब्द का ज्ञान सुबन्धु को था । उसने ‘मेलानन्दायते' का प्रयोग किया है। मेलानन्द Inkpot को कहते हैं। संस्कृत के लेखकों को 'मेला' शब्द का ज्ञान था। अमरकोष में एक त्रिकाण्डकोष का उद्धरण दिया हुआ है"मेला मसीजलं पत्राञ्जनं च स्यान्मसिद्धयोः इति त्रिकाण्डशेषः" एक दूसरे कोष १. व्हूलर, भारतीय पुरालिपिशास्त्र, पृ. २०१. २. देखिए, वही, पृ. २००. ३. देखिए, वही, पृ. २००. ४. वही, पृ. १६६. ५. वही, पृ. २०० 6. But a more plausible derivation of the term Mela' is from the Sanskirit root Mel' (to mix). The word 'Mela' obviously means the state of being mixed, implying the mixing of many ingredients in the preparation of Ink." ---Dr. Pandey, Indian Palaeography, P. 84. ७. अमरकोष, ३/५/१०, विकाण्डकोष, २/८/२७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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