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________________ ओझाजी ने दूसरा उद्धरण अजमेर जिले के बड़ली ग्राम में स्थित एक छोटे-से शिलालेख को माना है। बड़ली (बरली) गाँव अजमेर से छब्बीस मील दक्षिण-पूर्व में है। यह शिलालेख एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण लेख का खण्ड है। इसकी पहली पंक्ति में-वीर (1) भगव (त) और दूसरी पंक्ति में चतुरासिति व (स) खुदा है । इस पर ओझाजी का अभिमत है, "इस लेख का ८४ वाँ वर्ष जैनों के अन्तिम तीर्थंकर महावीर के निर्वाण संवत् का ८४ वाँ वर्ष होना चाहिए। अनुमान ठीक हो तो यह लेख ई. पूर्व (५२७-८४=४४३) का होना चाहिए । इसकी लिपि अशोक के लेखों में प्रयुक्त लिपि से पूर्व की प्रतीत होती है। इसमें वीराय का बी अक्षर है। उक्त बो में जो ई मात्रा चिह्न है, वह अशोक के लेखों में अथवा उसके उत्तरवर्ती किसी लेख में नहीं मिलता । अतएव वह चिह्न अशोक से पूर्व की लिपि का होना चाहिए । अशोक के समय में ई मात्रा के लिए '' चिह्न व्यवहार में आने लगा था।"१ एक पत्र में प्रकाशित इस लेख का उद्धरण और टिप्पड़ इस प्रकार दिया है"......विरय भगव (त) ....थ....चतुरासि तिव (स.)...... (का) ये सालिमालिनि .....र निविठमाझिमि के" इसका अर्थ है-भगवान् वीर के लिए.....८४वें वर्ष में मध्यमिका के ....। इस पर, उस पत्र के सम्पादक का टिप्पड़ है, “यह शिलालेख महावीर-संवत् ८४ का है । आजकल यह अजमेर संग्रहालय में है। अजमेर से २६ मील दक्षिण-पूर्व में स्थित वरली से यह प्राप्त हुआ था। शिलालेख में उल्लिखित माध्यमिका चित्तौड़ से ८ मील उत्तर स्थित नगरी नामक स्थान है। यह भारत का प्राचीनतम शिलालेख है।" २ यदि सुदूरवर्ती भारत में झांकें तो मोहन-जो-दरो और हरप्पा की खुदाइयों में प्राप्त मोहरों और फलकों पर खुदे लेख प्राचीनतम भारतीय लिपि के चिह्न हैं। उन पर अंकित आकारों की कायोत्सर्ग मुद्रा और वैराग्यपूर्ण ध्यानावस्था से पुरातत्त्वज्ञों ने उन्हें जैन तीर्थकर माना है और उन पर खुदे लेखों को जैन लेख । डॉ.प्राणनाथ ने एक लेख पर 'ॐ जिनाय नमः' पढ़ा है। लिपि का पढ़ा जाना विवादग्रस्त हो सकता है, किन्तु वह लिपि तो है ही, इसमें किसी को विवाद नहीं है। अतः कहा जा सकता है कि ईसा से ३००० तीन सहस्र वर्ष पूर्व के भारतवासियों को लिपि-ज्ञान था। डॉ. सुनीतिकुमार चाटुा ने अशोक के शिलालेखों की सुविदित ब्राह्मी लिपि का सम्बन्ध सिन्धुघाटी (मोहनजो-दरो और हरप्पा) की लिपि से जोड़ा है। उनका कथन है-- “There is a superfieial agreement between this youngest or linear phase of Mohan-Jo-dro writing of the period before 1500 or 2000 B. C. and the Brahmi Script of the 3rd Century B. C. Some of the Mohan-Jo-dro Signs resemble or are १. ओझा, प्राचीन लिपिमाला, पृ. २-३.. २. वह 'एक पत्न' मुनिश्री विद्यानन्दजी के पास सुरक्षित है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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