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समास ज्ञान के उत्कृष्ट भेद से अनन्तगुणा है।' अक्षर समास ज्ञान वह ज्ञान है जो कम-से-कम दो अक्षरों का और अधिक-से-अधिक एक मध्यम पद से एक अक्षर कम का हो । एक मध्यम पद में १६३४८३०७८८८ अक्षर होते हैं। यहाँ एक शंका है-क्या एक पद में उक्त अक्षरों का पाया जाना संभव है ? समाधान है-मध्यम पद के ये अक्षर विभक्ति या अर्थबोध की प्रधानता से नहीं बतलाये गये हैं, किन्तु बारह अंगरूप द्रव्य-श्रुत में से प्रत्येक के अक्षरों की गणना करने के लिए मध्यम पद का यह प्रमाण मान लिया गया है । अक्षर ज्ञान एक अक्षर का होता है- और अक्षर समास दो अक्षर से प्रारम्भ होता है । 3 संस्कृत काव्यों में एकाक्षर श्लोक रचना प्राप्त होती है, जो भारतीय भाषाओं की समृद्धि की द्योतक है। महाकवि भारवि का एक श्लोक है
"न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु ।
नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्न नुत् ॥१५॥१४॥४ अर्थ-हे विविधमुख प्रमथगणो ! यह क्षुद्र विचारवान पुरुष नहीं है, अपितु न्यूनता को समूल नष्ट करने वाला कोई देवता है। विदित होता है कि इसका कोई स्वामी भी है। बाणों से आहत होकर भी यह अनाहत प्रतीत होता है। अत्यन्त व्यथित को और व्यथित करना सदोष होता है, इस दोष से भी यह मुक्त है।
'बृहदारण्यकोपनिषद्' में एकाक्षरी भाषा का उल्लेख है । वहाँ द द द=दया, दान और दमन के लिए आया है। जैन ग्रंथों में भी हा, मा एकाक्षरों से दण्ड दिया जाता था । संस्कृत भाषा में आज भी अब्रह्मा-प्रजापति, कजल-सुख, ख=आकाश, च=और, न=नहीं, भ=नक्षत्र, र=अग्नि, ल स्वर्ग, हवाफ्य पूरण और वा=विकल्प के लिए प्रयुक्त होता है।
आचार्य समन्तभद्र ने 'स्तुतिविद्या' में भगवान् ऋषभदेव की स्तुति करते हुए एकाक्षरी श्लोक का प्रयोग किया है
"ततोतिता तु तेतीत स्तोतु तोती तितोतृतः ।
ततोऽतातिततोतोते ततता तेत तोततः ॥"५ अर्थ-हे भगवान् ! आपने विज्ञान वृद्धि की प्राप्ति को रोकने वाले इन ज्ञानावरणादि कर्मों से अपनी विशेष रक्षा की है, अर्थात् केवलज्ञानादि विशेष १. वहीं, गा. ३३३, पृ. १६३. २. 'बृहत् जैन शब्दार्णव', पृ. ४०. ३. 'तत्त्वार्थसूत्र', पं. फूलचन्द्र सिद्धान्तशास्त्री विवेचित, वाराणसी-५, पृ. ४०. ४. भारवि, किरातार्जुनीयम्, १५/१४. ५. स्तुतिविद्या, १३ वा श्लोक, पृ. १६.
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