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इस ग्रन्थ के प्रेरणा - दीप
मां भारती के वरद पुत्र, विश्व- मैत्री के प्रतीक और वीतरागता के तपी साधक १०८ मुनिश्री विद्यानन्दजी के चरण-कमलों में
सश्रद्ध समर्पित
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