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शिलालेखों में खरोष्ठी के शब्द अंकित करवाये । मौर्यों के बाद वैक्ट्रियन, पार्थियन, शक और कुषाणों ने भी इसी लिपि को अपनाया । कुषाण सम्राट बौद्ध थे, अतः उन्होंने धर्मप्रचार के सन्दर्भ में पश्चिम और उत्तर की ओर, अर्थात् बलूचिस्तान, अफगानिस्तान तथा मध्य एशिया की ओर भारतीयों को भेजा । उनके साथ ही वहाँ खरोष्ठी लिपि भी गई । वहाँ के शिलालेख, जो खरोष्ठी में लिखे मिलते हैं, भारतीयों ने खुदवाये थे । उस प्रदेश में भारतीय भाषाओं के लिखने के लिए खरोष्ठी का ही प्रयोग होता था । '
पश्चिम और उत्तर के प्रदेशों में, अर्थात् मध्य एशिया आदि में खरोष्ठी के लेख प्राप्त हुए हैं, वे ईसा बाद दूसरी शताब्दी से पहले के नहीं हैं, जबकि भारत में अशोक के, खरोष्ठी में लिखवाये गये शिलालेख ईसा पूर्व तीसरी शती के उपलब्ध हैं । इस आधार पर खरोष्ठी को उत्तर-पश्चिम से आया हुआ नहीं माना जा सकता । उससे पहले के प्रमाण यहाँ उपलब्ध हैं । खरोष्ठी भारत की लिपि थीभारत में जन्मी और यहाँ ही विकास को प्राप्त हुई । गुप्त सम्राटों के शासनATM में, जबकि भारतीय एकता और राष्ट्रीय भावना का उदय हुआ, तो उस समय की सर्व प्रचलित और व्यापक ब्राह्मी लिपि ने खरोष्ठी को अपदस्थ कर दिया और इस भाँति ईसा बाद चौथी सदी तक खरोष्ठी यहाँ प्रतिष्ठित रही । ३
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३. हिन्दी भाषा : उद्गम और विकास, पृष्ठ ५६२.
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१. वही, पृष्ठ ५३.
2. "Moreover, the manuscript and the documennts belong to a comparatively late date, none of them being apparently older than the second century A.D. In India on the other hand, the use of the Kharosthi can be traced back to the third century B. C".
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- Corpus Inscriptionum Indicarum, Vol.II, P. XIV, Indian Palaeography, Dr.Pandey, P. 53.
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