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so called common Characteristics of the kharosthi were due to its popular use and not due to any semetic influence."9 नितान्त सत्य है। खरोष्ठी में दीर्घस्वरों के अभाव के पीछे सेमेटिक प्रभाव खोजना भारत में मौजूद तथ्यांशों से आँख फेरना है।
खरोष्ठी ब्राह्मी से प्रभावित थी, यह बात डा. बलर ने भी स्वीकार की है। उनका कथन है, "व्यञ्जनों में अकी अन्तहित ध्वनि के लिए अलग चिह्न न लगाना और संयुक्ताक्षरों को बनाने के नियम निःसन्देह ब्राह्मी से लिए गए हैं। इनमें थोड़ी रद्दोबदल अवश्य हुई है। यह भी सम्भव है कि इ, उ, ए और ओ के लिए सीधी लकारों का प्रयोग भी ब्राह्मी से ही लिया गया हो, क्योंकि अशोक के सभी आदेश लेखों की ब्राह्मी में उ, ए, और ओ के लिए सदा या बहुधा मामूली लकीरें लगाते हैं। गिरनार में इ के लिए उथला भंग बना देते हैं, जो सीधी लकीर -सा हो दीखता है। दोनों में अन्तर करना प्रायः कठिन होता है। ब्राह्मी में खरोष्ठी की तरह ही इ, ए, और ओ की मात्राएँ व्यञ्जनों के सिरों पर और उ की मात्रा पैरों में लगती है। इसलिए दोनों के स्वरमात्राओं में परस्पर सम्बन्ध है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। इसमें मूल चिह्न ब्राह्मी के ही हैं । खरोष्ठी में सभी स्वर-हीन अनुनासिकों के लिए ब्राह्मी की भांति अनुस्वार का प्रयोग होता है ।” २ __ भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में खरोष्ठी का जन्म हुआ, ऐसा चीनी ग्रन्थों से स्पष्ट ही है। वहाँ यह भी लिखा है कि उसका जन्म-दाता कोई प्रतिभा सम्पन्न भारतीय व्यक्ति था और उसका नाम शायद खरोष्ठ था ।3 'शायद' शब्द उत्साहवर्धक है। खरोष्ठ में खर शब्द ने गधे से सम्बन्ध मिलाने पर मजबूर किया। जैन परम्परा से सिद्ध है कि यह वृषभोष्ठ =रिखबोष्ठ-खरोष्ठ था, जिससे खरोष्ठी का जन्म हुआ । जो कुछ भी हो, यह उत्तर-पश्चिमी भाग में छाई रही। पाँच सौ ईसा पूर्व इस प्रदेश पर फारस वालों का आधिपत्य था, यदि यह सत्य है तो यह भी सच है कि उनका डायरेक्ट शासन कभी नहीं रहा, वह सदैव इन-डायरेक्ट चला। उन्होंने खरोष्ठी को एक लोकप्रिय लिपि के रूप में स्वीकार किया। यही कारण है कि उस काल की ईरानी मुद्राओं पर खरोष्ठी के शब्द अंकित किये गये । जब मौर्यों का शासन आया तो उन्होंने भी इस प्रदेश के लिए खरोष्ठी को ही मान्यता दी। अशोक ने मानसरा और शाहबाज़ गढ़ी के 1. Indian Palaeography, Dr. R. B. Pandey, P. 56. २. भारतीय पुरालिपिशास्त्र, पृष्ठ ४७-४८. 3. "Kharosthi script originated in the North-West part of India and as it is
recorded in Chinese traditions, it was invented by an Indian genius whose nick-name was Kharostha, as the letters resemble ass-like.
-Indian Palaeography, P.58. 4. Indian Palaeography, Dr. R.B. Pandey, P. 56-57.
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