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खरोष्ठी लिपि
लिपियों के नाना ढंग थे। वे सभी ब्राह्मी नाम से अमिहित होते थे। प्राचीन जैन ग्रन्थों में ऐसे अठारह ढंगों का विवेचन मिलता है और ललित विस्तर नाम के बौद्ध-ग्रन्थ में चौंसठ का। इस सम्बन्ध में ऊपर कहा जा जा चुका है, किन्तु अभी तक पुरातात्त्विक आधार पर और ग्रन्थों के लिखित रूप में केवल दो ही लिपियाँ मिलती हैं--ब्राह्मी और खरोष्ठी । इनमें से ब्राह्मी के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा जा चुका है। दूसरी लिपि थी खरोष्ठी, जो सर्वाधिक प्रचलित भारतीय लिपि थी। भारत के पश्चिमोत्तर भाग से लेकर मध्य एशिया तक इसके अवशेष मिले हैं।
नामकरण-सम्बन्धी विकल्प
__ खरोष्ठ दो शब्दों से मिलकर बना है-खुर --- ओष्ट । इसका अर्थ है गधे के ओंठ अथवा गधे-जैसे ओंठ । एक मान्यता है कि इस लिपि के आविष्कर्ता का नाम खरोष्ठ था और शायद इसी कारण इस लिपि का नाम खरोष्ठी हुआ । दूसरा अभिमत है, उत्तर-पश्चिमी भारत में खरोष्ठी नाम की एक जाति रहती थी, जो असभ्य और बर्बर थी। उसीके नाम पर खरोष्ठी नाम चल पड़ा। तीसरा अभिमत है कि खरोष्ठी शब्द, मध्य एशिया-स्थित काशगर का संस्कृत प्रतिरूप है। इस पर स्टेनकोनो का कथन है कि-"यद्यपि चायनीज तुर्किस्तान में, खरोष्ठी के अनेक लिखित प्रमाण मिले हैं, किन्तु मैं ऐसा मानता हूँ कि वे भारतीय प्रवासियों द्वारा ले जाये गये थे । वहाँ की लिखित सामग्री ईसा की दूसरी शती से पहले की नहीं है, जबकि भारत में वह ईसा से तीन शताब्दी पहले की पाई जाती है। कुछ विद्वानों का कहना है कि यह ईरानी शब्द खरपोस्ट का भारतीय रूप है। खरपोस्ट गधे के चमड़े को कहते हैं। ईरान में इस पर लिखा जाता था। पाँचवाँ मत है कि खरोष्ट शब्द हिब्र के खरोशेथ से बना । प्राकृत में खरोशेथ का खरोट या खरोही हुआ और फिर संस्कृत में खरोष्ठ । डॉ. राजबली पाण्डेय ने लिखा है कि गधे के चलते मुंह के समान अनियमित और अव्यवस्थित होने से इस लिपि का नाम खरोष्ठी हुआ। इन सब मान्यताओं के पीछे कोई सशक्त भूमिका नहीं है, ऐसा मैं मानता हूँ। १. स्टेनकोनो का अभिमत, 'The Origin of the Kharosthi Alphabet', 'Indian
Palaeography', Dr. R. B. Pandey, p. 52-53. 2. “The script may have been called so due to the fact that most of the
Kharosthi characters are irregular Elongated curves and they look like the moving lips of an ass (Khara). Originally it must have been a nickname, which got currency in course of time.
- Indian Palaeography, Dr. R.B. Pandey, P.53.
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