________________
११५
सहस्रों वर्षों की परम्परा से अनुमोदित एक सम्भावना है कि 'खरोष्ठ' शब्द, 'वृषभोष्ठ' से बना । वृषभ का प्राकृत में-उसभ > रिसभ संस्कृत में - वृषभ > ऋषभ, अपभ्रंश में वृषभ > रिखब हो जाता है । हिन्दी में भी रिखब चलता है । वर्ण-विपर्यय से 'रिखबोष्ठी' का 'खरोष्ठी' बना। भाषा विज्ञान की दृष्टि से वर्ण-विपर्यय महत्त्वपूर्ण है । उससे शब्द कुछ से कुछ बनते रहे हैं । अतः रिखबोष्ठी से खरोष्ठी को एक भाषा वैज्ञानिक व्युत्पत्ति कह सकते हैं । इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है वृषभदेव का सर्वमान्य व्यक्तित्त्व । ब्राह्मी लिपि के प्रसंग में उनका उल्लेख हो चुका है। उनकी दो पुत्रियाँ ब्राह्मी और सुन्दरी क्रमशः उनके बायीं और दायीं ओर बैठी थीं, अतः उन्होंने ब्राह्मी के बायें हाथ पर, अपने दाहिने हाथ से तथा सुन्दरी के दायें हाथ पर अपने बायें हाथ से लिखा । यही कारण था कि सुन्दरी को जो कुछ सिखाया गया, वह दायें से बायीं ओर चला । विशेषकर उसे गणित की शिक्षा दी गई और 'अङ्कानां वामतो गतिः' प्रसिद्ध हुआ । अभिधान राजेन्द्र कोश के 'उसभ' प्रकरण में लिखा है
"लेहं लिवोविहाणं जिणेण बंभीए दाहिणकरेण ।
गणियं संखाणं सुन्दरीए वामेण उवइट्ठ ॥'
टीका - "लेखन लेखो नाम सूत्रे नपुंसकता प्राकृतत्त्वाल्लिपिविधानं तच्च जिनेन भगवता वृषभस्वामिना ब्राह्म या दक्षिणकरेण प्रदर्शितमत एव तदादित आरभ्य वाच्यते । गणितं नामैकद्वित्र्यादि संख्यानं तच्च भगवता सुन्दर्या वामकरेणोपदिष्टमत एव तत्पर्यन्तादारभ्य गण्यते ।'
११
इसका अर्थ है कि वृषभदेव ने ब्राह्मी को दाहिने हाथ से लिपि की शिक्षा दी और बायें हाथ से सुन्दरी को गणित और संख्या की शिक्षा दी । इससे ऐसा अनुमान सहज ही होता है कि ब्राह्मी लिपि के विपरीत, दाहिनी ओर से बायीं ओर लिखी जाने वाली खरोष्ठी के नाम से प्रसिद्ध हुई । आचार्य दामनन्दि ने भी अपने 'पुराण सारसंग्रह' के 'आदिनाथ चरित' में 'वामहस्तेन सुन्दयों गणितं चाप्यदर्शयत् " " लिखकर सुन्दरी को बायें हाथ से शिक्षा देनेवाली बात स्वीकार की है । आचार्य हेमचन्द्र ने 'त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित' में ' दर्शयामास सव्येन सुन्दर्यां गणितं पुनः ३ लिखा है और उससे उपर्युक्त कथन की पुष्टि हो जाती है ।
૨
इससे खरोष्ठी के आर्मेइक से उत्पन्न होने का एक ठोस आधार खण्डित हो जाता है । डा. बूलर और डिरिंजर का अभिमत है कि दायें से बायें लिखने की
१. अभिधान राजेन्द्रकोश, 'उसम' प्रकरण, भाग २, पृष्ठ ११२६. २. आदिनाथ चरित, पुराणसार संग्रह, डॉ. गुलाबचन्द चौधरी- सम्पादित, ३/१४. ३. हेमचन्द्राचार्यकृत, निशष्ठिशलाकापुरुषचरित, १/२/६६३.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org