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________________ १०४ पता चलता है कि पश्चिमी एशिया, यूनान, मिश्र और इथियोपिया के पहाड़ों और जंगलों में उन दिनों हजारों जैन सन्त महात्मा जा-जाकर जगह-जगह बसे हुए थे। ये लोग वहाँ बिल्कुल साधुओं की तरह रहते और अपने त्याग और अपनी विद्या के लिए मशहूर थे ।"" विद्वान अशोक को बौद्ध कहते हैं, किन्तु सत्य यह है कि अशोक को जैन धर्म और बौद्ध धर्म में इतना कम भेद दीखता था कि उसने सर्व साधारण में अपना बौद्ध होना अपने राज्य के बाहरवें वर्ष ( ई. पू. २४७ वर्ष) में स्वीकार किया था। उसके कई शिलालेख जैन सम्राट के रूप में मिलते हैं । अबुलफजल ने 'आइने अकबरी' में लिखा है कि अशोक ने कश्मीर में जैन धर्म का प्रचार किया था । अनेक जैन साधु वहाँ बस गये थे | 3 प्राचीनकाल से ही घुमक्कड़ जैन साधु विदेशों में जाते रहे हैं । उन्होंने वहाँ के धर्म और संस्कृति को ही नहीं, अपितु भाषा और लिपि को भी सतत् प्रभावित किया। वे प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि के धनी थे । उनकी अभिव्यक्ति के ये ही साधन थे । डा. राजबली पाण्डेय का यह कथन सत्य प्रतीत होता है कि आरमेनियन आदि लिपियां ब्राह्मी से प्रभावित हुई, ब्राह्मी उनसे नहीं । डा. उदयनारायण तिवारी ने 'हिन्दी भाषाः उद्गम और विकास' में लिखा है, "भारतीय संस्कृति की प्रतीक स्वरूप वस्तुतः ब्राह्मी लिपि ही भारत के विविध प्रदेशों एवं भारत के बाहर विदेशों में फैली । भारतीय धर्म प्रचारकों द्वारा यह मध्य एशिया पहुँची, जिसमें वहाँ की पुरानी खोतानी, तोखारी एवं ईरानी भाषाएँ लिखी गई ।" " डा. भोलानाथ तिवारी का कथन है, "यह लिपि भारत के बाहर भी गई, वहाँ इसके रूपों में धीरे-धीरे कुछ भिन्नताओं का विकास हुआ । मध्य एशिया में ब्राह्मी लिपि में ही पुरानी खोतानी तथा तोखारी आदि भाषाओं के लेख मिलते हैं ।" ६ यह भी सत्य है कि वहाँ रहने और वहाँ की भाषा और लिपियों के मिश्रण से ब्राह्मी ने एक परिवर्तित रूप धारण किया । यह स्वाभाविक भी था । आदान-प्रदान से ऐसा होता ही है । अपने मातृदेश में भी भाषा और लिपि एक ही रूप में स्थायी नहीं होती । युगानुरूप उसमें परिवर्तन होता है, होना भी चाहिए, तभी वह मृत्युञ्जयी हो सकती है, अन्यथा दिवंगत होना परिणाम है । अनेक लिपियाँ उसी परिणाम को प्राप्त हुईं । आज उनका उल्लेख मात्र मिलता है । उनमें प्रजनन शक्ति नहीं थी और वे १. पं० सुन्दरलाल, 'हजरत ईसा और ईसाई धर्म', पृष्ठ २२ . 2. Maj. General J. S. R. Forlong, Studies in Science of Comparative Religions, p. 20. 3. Jadunath Sarkar, Bibioteea Indica, Ain-I-Akabari, vol. II, Royal Asiatic Society, 1949. p. 377. 4. "It were the Phoenician and the Armaic characters which derived some Elements from the Proto-type of the Brahmi and not the vice-versa." -Indian Palaeography, p. 47. ५. डॉ० उदयनारायण तिवारी, हिन्दी भाषा उद्गम और विकास, पृष्ठ ५८०. ६. डॉ० भोलानाथ तिवारी, हिन्दी भाषा, पृष्ठ ६६०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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