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________________ प्रारम्भ में माना है।' वास्तविकता यह है कि लिपि ही की भाँति वे कृषि के भी प्रथम आविष्कारक थे । स्वयम्भू स्तोत्र की पंक्ति-"प्रजापतिर्यः प्रथम जिजीविषु: शशास कृष्यादिषु कर्मसु प्रजाः ।"२ इसी ओर इंगित करती है। इस भाँति ऋषभदेव के युग को हम ईसा से सहस्रों वर्ष पूर्व मान सकते हैं। डॉ. बूलर और विण्टरनित्स ने वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ ईसा से ४००० (चार हजार) वर्ष पूर्व माना है। और, इसके पहले हुए ऋषभदेव, जिन्होंने पहला लिपिज्ञान अपनी पुत्री ब्राह्मी को दिया। ऋग्वेद के 'सहस्रम् मे ददतोऽप्टकर्ण्य:से स्पष्ट है कि उस समय के लोग संख्या का लिखना जानते थे । छान्दोग्योपनिषद् के-'हिंकार इति त्र्यक्षरं'५ तथा तैत्तिरीय के'वर्णः स्वरः मात्रा बलम्'६ से तत्कालीन अक्षरज्ञान और उसके लिखने की बात प्रगट होती है। ... ऋषभदेव ने अपने कामदेव से सुन्दर और कात्तिकेय-से महाबली पुत्र बाहुबलि को सिन्धुघाटी की तरफ का पूरा राज्य बँटवारे में दिया था। जैन उल्लेखों से यह भी स्पष्ट है कि 'भरत-बाहुबलि-युद्ध' के बाद, विजय प्राप्त करने वाले बाहुबलि के हृदय में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने वीतरागी दीक्षा ले ली थी। ऋषभदेवजी के सभी पुत्र-भरत हों या बाहुबलि, भौतिकता और आध्यात्मिकता के समन्वय स्थल पर खड़े थे। उन्होंने भौतिक विकास को चरमोत्कर्ष दिया तो आध्यात्मिकता के तो प्रतीक ही बने। उन सब ने “विहाय यः सागरवारिवाससं, वधूमिवेमां वसुधां वधू सतीम् । मुमुक्षुरिक्ष्वाकु कुलादिरात्मवान् प्रभु प्रवव्राज सहिष्णुरच्युतः ॥"८ को अपने जीवन में ढाला था। अवशेषों में प्राप्त सिन्धुघाटी की सभ्यता इसी की उद्घोषक है। उसमें वैभव-सम्पन्नता के चिह्न हैं, तो नासाग्रध्यानस्थ योगियों के मूर्तिप्रतीक भी हैं। इस आधार पर मैं कहना चाहूँगा कि यह समूची सभ्यता ऋषभदेव और उनके पुत्र बाहुबलि की परम्परानुगत है। इसी कारण, यह बात सुनिश्चित रूप से कही जा सकती है कि सिन्धुघाटी की लिपि ब्राह्मी का पूर्वरूप थी। डॉ. डिरिजर ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'अलफावेट' में यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि अनार्य अरमइक अक्षर ही ब्राह्मी के पूर्व रूप माने जा सकते हैं। उनका 1. Jainism in Bihar, P. 7, L. P. २. स्वयम्भूस्तोत्र, १/२. 3. A History of Indian Literature, vol. I, P. 75 ४. ऋग्वेद, १०, ७२, ७. ५. छान्दोग्योपनिषद्, २, १०. ६. तैत्तिरीय उपनिषद्, १, १. ७. शालिभद्र सूरि, भरतेश्वर-बाहुबलिरास, पद्य १८६, १६३. ६. स्वयम्भूस्तोत्र, १/३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003641
Book TitleBrahmi Vishwa ki Mool Lipi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain
PublisherVeer Nirvan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages156
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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