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जैन कला में प्रतिकों का विशिष्ट महत्व है। प्राचीन जैन मूर्तियों, मंदिरों और शिलालेखोंमें इनका खुलकर प्रयोग किया जाता था। कुछ विद्वानोंका तो यह मतभी है कि प्रतीक योजना उस समयसे प्रचलित है, जव मूर्तिकलाका प्रारम्भ भी नहीं हुआ था। खारवेळ के अभिलेख तथा शिलांकन में भी नंदीपद, श्रीवत्स, वृक्षचैत्य, स्वस्तिक, वद्धमंगल आदि लांछन पाए जाते हैं। ये सव जैन धर्म के शुभ प्रतीक माने जाते हैं।
मोटे तौर पर यही कहा जा सकता है कि खण्डगिरि उदयगिरि में कला स्थापत्य के माध्यम से कलिंग के शिल्पियों ने अपनी धर्म-धारणा, सौंदर्य-वोध, ऐतिह्यपूर्ण संस्कृति और असीम वीरत्व की कालजयी कथा को अंकित कर गये हैं। इस पहाड़ के शिलालेख
और शिलांकन हमारी जातीय संपदा हैं और इन्हें सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य बनता है।
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