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________________ परिशिष्ट- ४ हाथीगुम्फा अभिलेख की लिपि और भाषा ओड़िशा के प्रख्यात लिपिविद पद्मश्री ड़क्टर सत्यनारायण राजगुरु अपनी “ओड़िआ लिपिर क्रम विकाश” पुस्तक के आद्य पन्ने में ही कहते हैं: “ ईसापूर्व तीसरी सदी में मौर्यवंशी राजा अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्ति के उपरांत ओड़िशा के धउलि और जउगड़ में शिला पर अपना धर्म अनुशासन उत्कीर्णित करवाया था । मेरी जानकारी के अनुसार वही इस देश की सर्व प्रथम लिपि है। इसे विद्वानवर्ग प्राचीन ब्राह्मी लिपि मानते हैं ।" राजगुरूजी का यह मत पूर्ण रूपसे भ्रमात्मक है। ओड़िशा के पश्चिमांचल अंतर्गत संबलपुर जिला के बिक्रमखोल में एक प्रागैतिहासिक अभिलेख का आविष्कार हुआ था, जिसे सब से पहले श्री काशीप्रसाद जयस्वाल ने ई १९३३ में Ind. Ant. LXII में प्रकाशित कर एक तथ्य गर्भक निबंध के माध्यम से उस पर आलोचना भी की थी। जयस्वालजी के मतानुसार "- The writing in not of pictographic nature but has reached syllabary or alphabetic stage." परवर्ती काल में विद्वानों ने भी इसे स्वीकारा है। महेंजोदाड़ो और हडप्पा में लिपि के आविष्कार के पश्चात प्राच्य और पाश्चात्य जगत के सभी विद्वान सहमत होते हैं कि ब्राह्मी लिपि के काफी पहले इस देश में एक और लिपि प्रचलित हो चुकी थी । पर वह ब्राह्मी की पूर्व लिपि आज भी अज्ञात और रहस्यमय है । Jain Education International ८१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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