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एक जीर्ण वापी थी, कुछेक प्राचीन टुटेहुए मंदिर थे जिनका संस्कार कर २४ तीर्थङ्करों की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की गयी थी। इस अभिलेख का पूर्ण पाठ इसी ग्रंथ में प्रदत्त है। इस गुम्फा के पास आकाशगंगा नाम से एक छोटा सा जल भंडार है तथा गुप्त गंगा, श्याम कुण्ड और राधा कुण्ड के नामसे तीन और जलाशय भी हैं, यह उल्लेखनीय है। इसी पहाड़ पर कई टुटे मंदिरों की आमलकी शिला और शिखर इत स्तत: पड़े हुए हैं जो अभिलेख वर्णित चौवीस तीर्थङ्करों के मंदिरों के भग्नावशेष से लगते हैं।
खण्डागार
खण्डगिरि की अनेक कीर्तियों का नाश मनुष्यों के हाथों हुआ है, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है। यह धर्मध्वजी मनुष्य का असहिष्णु भाव का स्पष्ट निदर्शन है। जो भी अवशेष हैं वे हमारी उन्नत कला और सौंदर्यवोध के प्राचीन साक्षी हैं।
उदयगिरि खण्डगिरि की गुम्फाओं में अंकित चित्रों को देख कर श्रीमती देवला मित्र ने यथार्थ में कहा हैं:
....... “मूर्तियों के सम्मुख भाग के सौंदर्य को निखारने की निष्ठावान्
चेष्टा और गठित मूर्तियों में स्वाभाविकता को देख कर कहीं भी शिल्पियों की सुजन अक्षमता या अपारगता नजर नहीं आती। वरन् हर दिशासे दक्षता ही दिखाई पड़ती है। मूर्तियों के परिपूर्ण मुख मंडल, त्रिचतुर्थांश या अर्ध खोदित होकर प्रदर्शित हुए हैं। मूर्तियों की भाव भंगिमाएं स्वाभाविक और स्वच्छंद हैं। गति उत्फुल्ल, सजीव और भावोद्योतक हैं। यंत्रणा, भयभीति, संकल्प, मानसिक उत्तेजना आदि अत्यंत स्वाभाविक और मूर्तियां सममित हैं। विभिन्न मूर्तियों में पारम्परिक संबंध है। गुहाओं के भित्ति-चित्रों से उत्कीर्णित मूर्तियों में शिल्प परिपक्वता अधिक स्पष्ट है। साथ ही आकृतियों के गठन, आदर्श की जीवंत अवतारण पूर्ण मात्रा में हो पायी है।
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