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नमिनाथ
२१. नामना २२. नामना
नेमिनाथ
नील्पद्म शंख सर्प सिंह
चामुण्डी आम्रा पद्मावती सिद्धायिका
२३. पार्श्वनाथ २४. महावीर
पहले त्रिशूलगुम्फा का निर्माण भी जैन अर्हतों के आवास के रूपमें हुआ था। बादमें वही उपासना मंदिर बनी। यहां भी चौवीस तीर्थङ्करों की मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां बारभूजी गुम्फा की मूर्तियों से अर्वाचीन लगती हैं। ये सभी दिगंबर मूर्तियों के रूप में परिकल्पित हैं और कला की दृष्टि से ई.पंद्रहवीं सदी के पहले की नहीं लगती। इस के नामकरण का कोई आधार ज्ञात नहीं है।
त्रिशूल गुम्फा से दक्षिणाभिमुख हो आगे बढ़जाने से पहले एक टूटी हुई गुम्फा दिखाई देगी। गुम्फा को काट कर समतल भी कर दिया गया है, फिरभी उसकी दीवार पर उत्कीर्णित ऋषभनाथ
और आम्रा देवी की मूर्तियां हैं। आम्रा देवी फलों से भरपूर आम्र वृक्ष के नीचे त्रिभंग भंगिमा में खड़ी हैं। मूर्ति की बायीं ओर टुट गयी है पर मुख मंडल और शिरोभूषा अक्षुण्ण हैं। संभवत: आम्रा या अम्बिका के नामानुसार इस गुम्फा का नाम अम्बिकागुम्फा रखा गया है।
इसके बाद है ललाटेंदु केशरी गुम्फा। इस गुम्फा के पास और बरामदे के साथ पहाड़ के अनेकांश काटलिये गये हैं। गुम्का के अंदर ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा विशिष्ट दो सुंदर मूर्तियां हैं। पर इस गुम्फा में सोमवंशी राजा उद्योत केशरी [ई १०४५] के राजत्व के पांचवे वर्ष का एक अभिलेख है। इसी अभिलेख से प्राप्त विवरणों के अनुसार कुमार पर्वत [खण्डगिरि] में
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