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________________ नवमुनि गुम्फा के अंदर नौ तीर्थंकरों की प्रतिमाएं खोदित होकर हैं। यही कारण है जिससे यह नवमुनि गुम्फा के नामसे नामित हुई है। इस नवमुनि गुम्फा के दो प्रकोष्ठ थे। सामने बरामदा था । सोमवंशी शासन काल में प्रकोष्ठों के बीच की दीवार और बरामदे की दीवार को तोड़ कर विस्तृत करके जैन - पूजापीठ के रूपमें बदला गया है । इसी गुम्फा के एक अभिलेख से यह ज्ञात होता है कि यह कार्य सोमवंशी राजा उद्योत केशरी के समय [ई. १०५८] सम्पन्न हुआ था । [ इस अभिलेख का पूर्णपाठ इसी ग्रंथ में सन्निवेशित किया गया है ] । उसके पश्चात जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं बनायी गयी । तीर्थङ्करों में से सात पीछली दीवार में योगासन में उपविष्ट मुद्रा में हैं। वे हैं ऋषभनाथ, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनंदननाथ, वसुपूज्यनाथ, नेमिनाथ, और पार्श्वनाथ। सभी के मस्तक पर त्रिछत्र शोभित है और छत्र के ऊपर करताल बजाते दो हाथ दिखाई पड़ते हैं । प्रत्येक के दोनों पावोंमें चामरधारी सेवक खड़े हैं और नीचे शासन देवियों की प्रतिमाएं हैं। इनकी शासन देवियां क्रम स इस प्रकार हैं- चक्रेश्वरी, रोहिणी, प्रज्ञप्ति, बज्रश्रृंखला, गांधारी, पद्मावती और आम्रा । दाहिनी दीवार पर फिरसे ऋषभनाथ और पार्श्वनाथ की मूर्तियां उत्कीर्णित हुई हैं। इन दो मूर्तियों को मिलाकर “नवमुनी” नामसे गुम्फा का नामकरण हुआ है। बायीं दीवार पर चंद्रप्रभनाथ की एक छोटीसी प्रतिमा भी है। पर नवमुनियों में उनकी गिनती नहीं होती । बारभुजी गुम्फा के बरामदे की दीवार की दोनों ओर बारह हाथोंवाली दो जैन शासनदेवियों की मूर्तियां उत्कीर्णित हुई हैं। उसी दिन से यह गुम्फा बारभुजी गुम्फा के नाम से प्रसिध्दि पायी है। दाहिनी ओर की देवी हैं रोहिणी । वे तीर्थंकर अजितनाथ की शासन देवी हैं। बायीं ओर आदिनाथ ऋषभ की शासनदेवी चक्रेश्वरी हैं। यह गुम्फा प्रशस्त और आयताकार है । उसमें चौवीस तीर्थङ्करों की Jain Education International ७६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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