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कि इसका निर्माण ईसापूर्व प्रथम शताब्दी में दोहद श्रमणों के लिये हुआ था। यहां के एक और अभिलेख अब दुष्पाठ्य हो गया है। सर जॉन मार्शलके मतानुसार गुम्फा स्थापत्यकी दृष्टिसे यह गुम्फा संसारमें सर्व प्रथम है।
का कली है
द्वितीय ततोवा गुम्फा की बायीं और थोड़ी सी दूरी पर तेंतुलि गुम्फा है जिससे लगभग संलग्न होकर है खण्डगिरि गुम्फा। शायद इस गुम्फा के समीप कोई तेंतुलि [ईमली] वृक्ष था जिससे यह तेंतुलि गुम्फा के नाम से नामित हुई है। कला की दृष्टि से ये दोनों गुम्फाएं सामान्य हैं। फिरभी तेंतुलि गुम्फा के एक पार्श्व में एक नारी की प्रतिमा है जिसके हाथों में कमल की कली है
और अन्य पार्श्व में क्रीड़ारत हाथी है। खण्डगिरि पहाड़ पर बनी सीढियां चढ़ते जाएं तो सब से पहले खण्डगिरि गुम्फा आएगी। खण्डगिरि पहाड़ के नाम के आधार पर इस गुम्फा का नाम खण्डगिरि पड़ा नहीं है, गुम्फा के सभी अंशों में दरार आ चुकी है जिससे वह खण्ड़ों में बंटगया है। नामकरण का यह भी कारण हो सकता है। इस गुम्फा के ऊपर और नीचे दो प्रकोष्ठ हैं। ऊपर के प्रकोष्ठ की पीछे की दीवार पर ओडिशा के आराध्य देव जगन्नाथ का एक चित्र रंगों में अंकित हो कर है।
हाथी है। खण्डगि
ढ़ियां चढ़ते जाएं तो
खण्डगिरि गुम्फा की बायीं ओर चार गुम्फाएं हैं। वे हैं -ध्यानगुम्फा, नवमुनिगुम्फा, बारभूजीगुम्फा, और त्रिशुलगुम्फा।
ध्यानगुम्फा को ध्यानघर कहा जाता है। नाम से ही इसकी उपयोगिता के बारे में ज्ञात हो जाता है। यह एक साधारण और आडम्वरहीन प्रकोष्ठ है।
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