________________
में कमल है, दोनों ओर दो हाथियां हैं जो कमल पर खड़े हुए हैं और सूंड उठाए पानी वरसा रहे हैं। दोनों हाथियों के पीछे दो तोते भी हैं। चौथे तोरण पर वृक्ष देव की पूजा का . दृश्य है। घेरे के अंदर पवित्र वृक्ष है, दोनों ओर राजा और रानी हैं। पूजा कर रहे हैं। उनके पास दो खर्वकाय पुरुष भी खड़े हुए हैं।
- ये चित्र धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। प्रथम चित्र में चार दांतोवाला हाथी है। जैन ग्रंथों से ज्ञात होता है कि महावीर की माता क्षत्राणी त्रिशला ने अपने चतुर्दश स्वप्नोंमें सब से पहले चार दांतोंवाला हाथी देखा था। उन्होंने अपने चौथे सपने में दो हाथियों के बीच बैठी श्री या लक्ष्मी को देखाथा। [शंसितचित्र में लक्ष्मी बैठी हुई नहीं हैं]। अत: यह भी एक जैन धर्म की पारंपरिकता है।
प्राचीन भारतीय कला क्षेत्र में घेरे में वृक्ष को वौद्ध धर्म का 'बोधिद्रुम' और जैन धर्म का 'कल्पवृक्ष' के प्रतीक माना गया है। उदयगिरि खण्डगिरि में खारवेळ के काल में इस वृक्ष चैत्य की पूजा को जैन धर्म के संकेत के रूप में ग्रहण करना ही
अधिक संगत होगा। यहां यह उल्लेखनीय है कि, हस्ती, और श्री .देवी हिंद और बौद्ध धर्म के साथ भी जुड़ी हुई हैं।
.
इसका भी प्रमाण है कि अनंत गुम्फा में जैन धर्म के लांछनों की पूजा होती थी। गुम्फा की भीतरी दीवार पर सात सांकेतिक चित्र उत्कीर्णित हुए हैं (चि.क्र.२६)। मध्य भाग में नंदिपद है और दोनों पार्यों में क्रम से वृक्षचैत्य, श्रीवत्स और स्वस्तिक लांछन है। परवर्ती काल में वहां एक जैन तीर्थंकर का विग्रह बनाने का प्रयास भी हुआ था। पर वह संपूर्ण नहीं हो पाया। इसी गुम्फा के अभिलेख [परिशिष्ट-१ क्षुद्र अभिलेख -न.८] से ज्ञात होता है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org