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शिखर पर उलटा कमल, उस के ऊपर तोरण हैं। तोरणों पर तीन फनवाले सर्प अंकित हुए हैं ( चि. क्र. २५) ।
इसी सर्प-लांछन के लिए यह गुम्फा सर्पगुम्फा के नाम से नामित है । सर्प तीर्थंकर पार्श्वनाथ का लांछन है। अतः अनुमान है कि यह गुम्फा तीर्थंकर पार्श्वनाथ के प्रति उत्सर्गीकृत गुम्फा है। गुम्फा के तोरण भी सूक्ष्म कारूकार्य से सुशोभित हैं। प्रथम तोरण पुष्पमाल्य द्वारा, द्वितीय और तृतीय तोरण पर सिंह और वृषभों के साथ नागरिकों की कौतुक क्रीड़ाएं चित्रित हुई हैं। चौथे तोरण में नीलोत्पल लिए उड़जाते राजहंसों की पंक्ति उत्कीर्णित होकर है। तोरण के आभ्यंतरीण अंशों के जो चित्र बनाए गयें हैं वे ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। प्रथम चित्र में एक चार दांतोंवाला पृथुलकाय हाथी दो हाथिनियों के बीच खड़ा है। उसकी भाव- मुद्रा गंभीर है। द्वितीय चित्र में एक राज - पुरुष चार अश्व-युक्त रथ पर चले जारहे हैं। दोनों ओर दों नारियां भी बैठी हुई हैं। राजा के ऊपर राजछत्र शोभित है। आकाश पर सूर्य, तारकाएं और चंद्रमा हैं जिनसे यही सूचना मिलती है कि राजपुरुष दिन रात रथ पर परिभ्रमण करते रहते हैं। रथ की गति के साथ ताल मिलाते से एक खर्वकाय मनुष्य दौड़ता सा दिखाया गया है जिसके बायें हाथ में पानपात्र है और दाहिने हाथ में उड़ती हुई पताका है। कई विद्वानों ने उन राजपुरुष को सूर्य देव माना है पर यह सिद्धान्त तर्क-संगत नहीं लगता । सूर्य के रथ में चार घोड़े नहीं होते न कि सूर्य के मस्तक पर राज छत्र होता है। उस पर इस चित्र में आकाश पर सूर्य का वर्तुलाकार चित्र भी है। यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि वह कोई महा मेघवाहन वंशज राजपुरुष हैं। तीसरे तोरण पर पद्म सर में खड़ी श्री या लक्ष्मी की मनुष्याकृति का चित्रण हुआ है। देवी लक्ष्मी के दोनों हाथों
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