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का नाम जगन्नाथ गुम्फा पड़ा है। अब वह रंगीन चित्र पूर्ण रूपसे मिट चुका है। पर गुम्फा के प्राचीन अलंकरण अक्षुण्ण हैं। यह उदयगिरि में सबसे बड़ी कृत्रिम गुम्फा है । इस गुम्फा में जब जगन्नाथ की पूजा होती थी तब पासवाली गुम्फा में महाप्रसाद का रंधन कार्य हुआ करता था । उसीसे वह गुम्फा रषोई गुम्फा के नाम से परिचित है।
खण्ड़गिरि के गुम्फा समूहः
खण्ड़गिरि की दोनों ततोवा गुम्फाओं के तोरणों पर शुक पक्षी उत्कीर्णित हुए हैं। संभवत: इसी कारण ये गुफाएं ततोवा नामसे नामित हुई हैं। प्रथम गुम्फा के कुछ ही ऊपर दूसरी बनी है। प्रथम गुम्फा में दो और द्वितीय में तीन अलंकृत तोरणों से इनके प्रवेश पथ सजाए हुए हैं। प्रथम गुम्फा के दोनों तोरणों के बीच एक अभिलेख है [ परिशिष्ट - १ - क्षुद्र ब्राह्मी अभिलेख नं ९ ]। इसी से सिद्ध होता है कि यह गुम्फा पादमूलिक कुसुम के द्वारा बनायी गयी थी। इस गुम्फा के आगे धोति और चादर पहने दो द्वारपाल हाथों में तलवार लिए खड़े होने की छवि खोदित हुई थी। दूसरी गुम्फा में नृत्य और संगीत के कई अभिनव दृश्य हैं जिसका विवरण इसी ग्रंथ में इसके पूर्व दिया जा चुका हैं। इसी गुम्फा के भीतर ६ पंक्तियों में गेरु रंग से लिखित ब्राह्मी लिपि के कुछ वर्ण दिखाई पड़ते हैं। संभवतः परवर्ती काल में किसी विद्यार्थी के द्वारा लिपिशिक्षा के समय ये लिपियाँ लिखी गयी हैं। निश्चित रूप से ये खारवेळ की समकालीन लिपियाँ नहीं हैं ।
खण्ड़गिरि पहाड़ के बीच की अनंत गुम्फा धार्मिक तथा शिल्पकला, दोनों दृष्टि से गुरूत्वपूर्ण है। यह गुम्फा ऊंची छत वाला एक लंबा प्रकोष्ठ है। गुम्फा के चार प्रवेश-पथ हैं जिन्हें आलंकारिक स्तंभ और तोरणों से सजाया गया है। स्तंभों के पादप्रदेश में पूर्ण-कुंभ,
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