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मत है- “मंचपुरी के नीचले खण्ड़ में कालिंग जिन की मूर्ति टुट चुकी है। वह मनुष्याकृति प्रतिमा थी इसके संकेत उस भग्न विग्रह ही से मिल जाते हैं।"
गणेश गुम्फा के दाहिने प्रकोष्ठ के भीतर एक गणेश की मूर्ति है। इसी से उसे गणेश गुम्फा के नाम से नामित किया गया है। ज्ञात होता है कि भौमकर वंशीय महाराजा शांतिकर देव के राजत्व काल में विरजा निवासी भिषक (वैद्य) भीमभट्ट का पुत्र नन्नट ने यहां एक प्रस्त (नाप का परिमाण) धान दिया था। यह कार्य भौम संवत ९१ (चंद्रांक) अर्थात ई. ८२७ [७३६+९१] को सम्पन्न हुआ था। उस समय गुम्फा के सामने दो हाथियों की प्रतिमाएं भी स्थापित हुई थीं। इस गुम्फा के आभ्यंतरीण चित्र राणीगुम्फा के ऊपरी खण्ड में बने चित्रों के आधार पर बने हुए होने के बावजूद उनसे भिन्न लगते हैं. इसमें लगता है कविवर भास वर्णित उदयन और वासवदत्ता की प्रेम-कथा चित्रित हुई है। पर इन अंकनों में भौम कालीन कला का निखार है।
जम्बेश्वर गुम्फा में एक क्षुद्र ब्राह्मी अभिलेख है [परिशिष्ठ - क्षुद्र ब्राह्मी अभिलेख - नं ६](1) जिससे पता चलता है कि इस गुम्फा का निर्माण महामंत्री नाकिय और बारिया के द्वारा हुआ था।
व्याघ्रगुम्फा में भी दो ही पंक्तियों में एक क्षुद्र ब्राह्मी अभिलेख है [परिशिष्ट- क्षुद्र ब्राह्मी अभिलेख नं- ५](1) नगर विचारपति भूति ने इसे खुदवाया था, यह बात इसी अभिलेख से स्पष्ट हो जाती है। इस गुम्फा का सम्मुख भाग एक मुंह खोले बाघ के सर की तरह दिखाई पड़ता है जिससे इसे “व्याघ्रगुम्फा के नामसे नामित गया है।
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