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मंचपुरी गुम्फा दो खण्डोंवाला एक विशिष्ट गृहाआवास है। कुछ विद्वानों के मतानुसार ऊपरी खण्ड का नाम “स्वर्गपुरी" और निम्न खण्ड का नाम “मंचपुरी' है। ऊपरी खण्ड के अभिलेख से (परिशिष्ट-१-अभिलेख-१) ज्ञात होता है कि चक्रवर्ती सम्राट खारवेळ की अग्र महिषी के द्वारा श्रमणों के लिए निर्मित हुआ था। निचले खण्ड के अभिलेख (परिशिष्ट-१.अभिलेख-२क) से स्पष्ट सिद्ध हो जाता है कि इसका निर्माण महाराजा आर्य मेघवाहन कुदेपसिरि ने करवाया था। संभवतः कुदेपसिरि खारवेळ के परवर्ती राजा हैं। (परिशिष्ट-१-अभिलेख-२ख)। मंचपुरी गुम्फा के नीचले खण्ड़ में पिथुण्ड में कालिंगजिन की प्रतिमा की प्रतिष्ठा के चित्र के बारे में डॉ. नवीन कुमार साहू ने कहा है: “कालिङ्ग जिन की प्रतिमा के आगे राजपुरोहित अर्चना की मुद्रा में खड़े हैं, उनके पीछे स्वयं खारवेळ हैं, उनके पीछे राजमहिषी के पीछे राजकुमार कुदेपसिरि प्रणाम मुद्रा में खड़े होकर कालिंग जिन के प्रति श्रध्दार्पण करते दिखाई देते हैं। राजछत्र विहीन सम्राट के शिरोदेश पर वाद्य बजाते दो गंधर्व हैं। राजछत्र की भांति यह भी एक गृहीत राजकीय संकेत है। राजकुमार के मस्तक पर उदीयमान सूर्य अंकित है। जिस हाथी पर राज परिवार पिथुण्ड आया था वह हाथी सब के पीछे खड़े होकर कालिंगजिन के प्रति भक्ति-ज्ञापन करता सा दिखाई देता है। हस्ती के ऊपरी भाग में एक विद्याधर पूजा उपहार लिए आकाश मार्ग से जिनपीठ को आते से दिखते हैं। यह शिलांकन कला
और धर्म की दृष्टि से अत्यंत गुरुत्वपूर्ण है। पर विडम्वना तो यह है कि अब कालिंग जिन की प्रतिमा के बहुलांश टूट चुके हैं। श्रीमती देवला मित्र के मतानुसार ईसा के पूर्व काल में जैनों की मनुष्याकृति प्रतिमा की परिकल्पना तक हुई नहीं थी। उन्हें उदयगिरि और खण्डगिरि की गुम्फाओं में उस समय की एक भी मनुष्याकृति जैन प्रतिमा मिली नहीं थी। पर खण्डगिरि की अनंत गुम्फा में एक मनुष्याकृति लक्ष्मी की प्रतिमा है। इस संदर्भ में डॉ.साहू का
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