________________
परिशिष्ट - ३
खारवेळ के समय में शिल्पकला
पश्चिम ओडिशा के गुड़हाण्डी से प्रागैतिहासिक युग के चित्रों के आविष्कार के पश्चात भारत में कला और स्थापत्य के क्षेत्र में ओड़िशा ने एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। इसके पूर्व भारत में जिन कुछेक चित्रों का आविष्कार हुआ था उनमें से उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के निकट पर्वत गुम्फा के चित्र और मध्यप्रदेश में रायगढ़ जिला के सिंहनपुर के पास पाए गये चित्र उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त भारत में कहीं और भी प्रागैतिहासिक चित्र हैं, निश्चित रूप से इनका कोई पता नहीं था। अब गुड़हाण्डी के चित्र भारत में प्रागैतिहासिक मानव के अन्यतम कलाकृति के रूप में गृहीत हुए हैं। गुड़हांडी में पाए गये चित्रों में विशेषकर एक शिकार का चित्र चित्ताकर्षक है। संपूर्ण चित्र का अंकन गेरू के रंग से हुआहै और असका किसी प्रागैतिहासिक कलाकार का बालक तुल्य अंकन होने के बावजूद उसमें अंतर्निहित प्राणवत्ता और प्राकृतिक कमनीयता की सराहना विद्वानों ने की है। गुड़हांड़ी के अतिरिक्त पश्चिम ओडिशा के संबलपुर जिले में उलाफगड़, सुंदरगड जिला के उषाकोठी, माणिकमड़ा और कालाहांड़ी जिले में योगीमठ आदि जगहों से भी प्रागैतिहासिक चित्र पाए गये हैं।
___ खारवेळ के हाथीगुम्फा अभिलेख से स्पष्ट ज्ञात होता है कि प्राग्मौर्य काल से कलिंग के पिहुण्ड में कालिंगजिन प्रतिमा की पूजा होती थी। डॉ. साहू बताते हैं, कलिंग के पिहुण्ड में प्रतिष्ठित जैन प्रतिमा भारत के ऐतिहासिक युग में प्रतिमा पूजा का प्रथम दृष्टान्त है। भारत में मौर्य शासन काल से पत्थर काटने और खोदने की एक शैली विकसित हो चुकी थी। विहार राज्य के पटना जिले में बराबर और नागार्जुनी पर्वतों में क्रमश: अशोक और उनके नाती
६४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org