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दशरथ के द्वारा खोदित गुम्फाएं आज भी अक्षत अवस्था में हैं। इन गुम्फाओं के खनन के हेतु भारतीय प्रस्तर खोदन शैली में एक नयी धारा ने जन्म लिया। बराबर और नागार्जुनी पहाड़ी गुम्फाओं के खनन का वह प्रारंभिक प्रयास ईसापूर्व तृतीय शताब्दी से धीरे विकसित होकर ई. द्वितीय तृतीय शताब्दी तक भाजा, बेड़सा, काले, कान्हेरी, अजंता आदि के अत्यंत कलात्मक बौद्ध गिरि गुम्फाओं में उत्कर्ष के शिखर स्वर्श करता सा लागा । गुफाखनन के प्राथमिक प्रयास और चरम उत्कर्ष के मध्यबर्ती काल खण्ड में उदयगिरि - खण्ड़गिरि में माध्यमिक उपादान लक्षणीय हैं। यह कहा जा सकता है कि भारतीय गुम्फा निर्माण कला की विकासधारा में उदयगिरि और खण्ड़गिरि ने दिगदर्शक की भूमिका निभायी है।
खारवेळ के राजत्व काल में उदयगिरि - खण्ड़गिरि में कितनी गुम्फाएं थी बता पाने के लिये कोई विश्वसनीय तथ्य नहीं है। वेणीमाधव बडुआ ने हाथीगुम्फा अभिलेख की चतुर्दश पंक्ति का भ्रमपूर्ण पाठ कर के वहां ११७ गुम्फाओं की विद्दद्यमानता की पुष्टि की है। पर वह ग्रहणीय नहीं है। जॉन मार्शल के अनुसार उन गुंफाओं की संख्या ३५ से अधिक होगी। पर मनमोहन गांगुलीने उन पहाड़ों में गुंफाओं की गणना की थी । उनके अनुसार गुंफाओं की संख्या २७ हैं। यह निश्चित रूप से स्वीकारणीय है कि मनुष्य और प्रकृति के हाथों कई गुंफाएं ध्वंस होगयी हैं, पर उनके अवशेष अब भी विद्यमान हैं। अब उदयगिरि में १८ और खण्ड़गिरि में १५ गुम्फाएं हैं। इन गुम्फाओं को बारीकी से देख कर ड़ॉ. नवीन कुमार साहू, श्रीमती देवला मित्र और डॉ. रमेश महापात्र ने अपने अपने संदर्भों में कई अमूल्य तथ्यों पर प्रकाश डाला है। उन गुम्फाओं के अब प्रचलित नाम इस प्रकार हैं:
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