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के अभाव और आवश्यकताओं का अनुभव कर नहर खुदवाने की योजना बनायी होगी। वह कार्य संभवत: उनकी मृत्यु के पूर्व ही पूरा हुआ होगा। महापद्म नंद की मृत्यु ई. पू. ३३४ को हुई, अत: वह कार्य ई.पू.३३५ को पूरा हो गया होगा। इसी को आधार बनाकर डॉ. साहू ने खारवेळ के राजत्व के पांचवें वर्ष को ई.पू.३५ [३३५-३००] माना है तथा ई.पू. ४० में राज्याभिषेक होने का मत प्रदान किया है।
सातकर्णी
हाथीगुम्फा अभिलेख की वर्णन के अनुसार सातकर्णी के बल-विक्रम की उपेक्षा करते हुए खारवेळ ने अपने राजत्व के दूसरे वर्ष ही उनके विरुद्ध युद्ध अभियान की तैयारियां की। इसके परिणाम के संबंध में हाथीगुम्फा शिलालेख पूर्ण रूप से मौन है। इस अभिलेख से यह स्पष्ट है कि खारवेळ अपने राजत्व के चौथे वर्ष के युद्धाभियान में सफल हुए थे और सातवाहन राजा को परास्त किया था। पर यहां भी सातकर्णी का उल्लेख हुआ नहीं है। अत: विद्वानों का मत है कि उस समय राजा सातकर्णी की मृत्यु हो चुकी थी और उनकी विधवा पत्नी पर राज्य शासन का भार था। अत: खारवेळ के राजत्व काल की गणना सातवाहन वंश के कालखण्ड के साथ मिला कर किया जाना आवश्यक है।
प्राचीन पुराणों की गणना के अनुसार मौर्य बंश ने १३७ वर्ष और सुंग-काण्व वंश ने ११२ वर्षों तक शासन किया था। अत: सातवाहन वंशी सिमुक ने ई.पू. ७३ [ई.पू. ३२२-१३७-११२] में सुंग-काण्व शासन का अंत किया। सिमुक सातवाहान ने अपने राज्याभिषेक के पश्चात मगध की सुंग-काण्व शक्ति के विरुद्ध युद्धभियान के लिये दीर्घ काल का प्रयास किया होगा। इसी विचार से डॉ.साहू ने राय दी है कि सिमुक ने अपने राजत्व के पंद्रहवें वर्ष में मगध पर आक्रमण किया था और उसी के आधार पर उन्होंने
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