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________________ के शासन के बारे में पता था। उन राजवंशों का उल्लेख उन्होंने एकाधिक बार किया है। अत: वे मौर्य सम्राट अशोक को नंदराज मान लेने का भ्रम भी कर सकते हैं, यह अंसभव सा लगता है। खारवेळ के प्राय एक शताब्दी के पश्चात शक राज रूद्रदमन ने अशोक को मौर्यवंशी नरपति के रूप में अपने जुनागड़ अभिलेख में उल्लेख किया है: “मौय्यस्य राज्ञः चंद्रगुप्तस्य राष्ट्रियेण वैश्येन पुष्यगुप्तेन कारितं अशोकस्य मौर्य्यस्य कृते यवनराजेन तृषास्पेनाधिष्ठाय प्रणालीभिरलंकृतं।" - (पं. ८-९) मोटे तौर पर यही कहा जासकता है कि अशोक को नंदवंशी राजा के रूपमें प्रतिपादित करने का प्रयास भ्रमात्मक ही होगा और हाथीगुम्फा अभिलेख में वर्णित नंदराजा महापद्म नंद ही थे, इस में प्रतिवाद की क्षीणतम शंका भी नहीं होनी चाहिए। अब प्रश्न उठता है “तिबस सत" का सही अर्थ क्या है १०३ या ३००! अनेक विद्वान इसे १०३ मानते हैं। पर खारवेळ के हाथीगुम्फा शिलालेख की १६ वी पंक्ति में १०५ को “पानतरिय सत' लिखा गया है। उस हिसाब से १०३ “तितरिय सत" होना चाहिए। पाली भाषामें “पांच सौ शकट" "पंचहि शकट सतेहि" होगा। पांच सौ जातक कहानियों का “पंच जातक सत" के रूप में उल्लेख हुआ है। हाथीगुम्फा अभिलेख की भाषा शास्त्रीय पालि भाषा की समीपवर्ती भाषा है। अत: इसका भाषांतरण पालि के अनुरूप ही होगा। अत: हाथीगुम्फा अभिलेख में उल्लिखित “तिबस सते" निश्चित रूप से ३०० ही होगा। यह १०३ हो ही नहीं सकता। इस सिद्धात पर पहुंचने के बाद खारवेळ के सही शासन काल के निर्णय में कोई कठिनाई रह नहीं जाती। इ.पू. ३५० में कलिंग के अंतिम क्षत्रिय राजा की हत्या कर के महापद्म नंद ने कलिंग पर अधिकार पाया था। उन्होंने कलिंग पर राजत्व के कुछ ही समय बाद कलिंग के निवासियों ६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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