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करने में कोई कठिनायी नहीं रह जाती है। पर इस पर भी कुछेक विद्वानों का भिन्न मत है अतः उन पर भी विचार समीक्षा आवश्यक
हाथीगुम्फा अभिलेख के नंदराज को जयस्वाल और बेनर्जी ने शिशुनाग वंशीय राजा नंदिवर्धन और कृष्णचंद्र पाणिग्राही ने मौर्य सम्राट अशोक के रूप में चिन्हित किया है। यह उल्लेखनीय है कि शिशुनाग वंश के राजा नंदिवर्धन के पराक्रम या युद्धाभियान के बारे में कुछ भी प्रमाण इतिहास या पुराणों में संरक्षित हो कर नहीं है। उन्होंने कलिंग पर कभी विजय पायी थी इसकी भी कोई सूचना किसी भी सूत्र से प्राप्त नहीं होती। वरन् मत्स्य, वायु, ब्रह्माण्ड आदि पुराणों में तथा जैन परिशिष्ट पर्व में नंदराज महापद्म का कलिंग पर अधिकार के बारे में उल्लेख है। उन्होंने अनेक राज्यों पर विजय पायी थी अतः उन्हें भागवत में द्वितीय पशुराम की आख्या मिली है। इसके अतिरिक्त ओडिशा के कई क्षेत्रों से नंदवंश की मूद्राएं भी प्राप्त हुई हैं। हाथीगुम्फा अभिलेख के नंदराज को मौर्यवंशी सम्राट अशोक मानने के लिये कोई ग्रहणीय ऐतिहासिक कारण भी नहीं है। प्राचीन भारत के किसी भी अभिलेख अथवा साहित्य में अशोक नंदवंश के शासक के रूप में वर्णित हुए. हैं क्या? यह भी एक प्रश्न है। एकादश शताब्दी में काश्मीर के सोमदेव और क्षेमेंद्र नामक दो पंण्डितोंने क्रमश: “कथा-सरित- सागर" और "बृहत् कथा मंजरी' नाम से दो ग्रंथों की रचना की थी। ये दोनों रचनाएं ई. द्वितीय शताब्दी में रचित पैशाची भाषा का “कथा कोश" या “वृहत् कथा कोश" के संस्कृत अदुवाद हैं। यह एक अनवद्य कथा-संकलन है। इसमें चंद्रगुप्त नामक नायक को “पूर्व नंदसुत" के रूप में
और ई. षष्ठ शताब्दी में रचित विशाखादत्त की नाट्य रचना "मुद्राराक्षस" में अशोक के पितामह चंद्रगुप्त को "नंदान्वय' के रूप में अभिहित किया गया है। इस विचार से अशोक को नंदराज मान लेना कहां तक तर्क सम्मत होगा, वह विचारणीय है। हाथीगुम्फा अभिलेख से स्पष्ट ज्ञात हो जाता है कि खारवेळ को नंद वंश और मौर्य वंश
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