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________________ ही मिल जाती है, पर ऐतिहासिक समस्या का समाधान के लिये वह कदापि उपयोगी नहीं है । क्यों कि वृहस्पति मित्र नामक राजा भारत इतिहास में अज्ञात नहीं हैं। अभिलेखों और मुद्राओं में भी यह नाम अंकित होकर है। इस परिप्रेक्ष में हाथीगुम्फा अभिलेख में वर्णित वृहस्पति मित्र को पुष्य मित्र के रूप चिन्हित करना एक भ्रांत प्रयास ही माना जाएगा। कोशाम्बी के समीपस्थ पोभषा ग्राम से प्राप्त एक शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि राजा वृहस्पति मित्र की माता का नाम गोपाली था। उनके मामा आषाढ़ सेन अहिछत्र के शासक थे। एक और अभिलेख से यह भी ज्ञात होता है कि राजा वृहस्पति मित्र की यसमिता नाम की बेटी मथुरा क्षेत्र की रानी थी। अभिलेख में दोनों आषाढ़ सेन और यसमिता ने राजा वृहस्पति मित्र के स्वजन होने के नाते स्वयं को गौरवान्वित माना है। लिपितात्विक दृष्टि से वृहस्पति मित्र के पभोषा अभिलेख और मुद्रा की लिपियां ई.पू. प्रथम शताब्दी की मानी गयीं है। खारवेळ के अभिलेखों की लिपियां इन लिपियों की समकालीन लिपियां हैं, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है। नंदराज हाथीगुम्फा अभिलेख की षष्ठ और द्वादश पंक्तियों में नंदराज का नामोल्लेख है। षष्ठ पंक्ति के विवरण के अनुसार खारवेळ ने अपने राजत्व के पांचवें वर्ष में नंदराज के द्वारा तीन सौ [ तिवस सत] वर्ष पहले खुदवायी गयी प्रणाली को तिनसुली होते हुए कलिंग नगरी तक विस्तृत किया था। द्वादश पंक्ति के अनुसार खारवेळ ने अपने राजत्व के बारहवें वर्ष में मगध पर विजय प्राप्त होने के पश्चात नंदराज के द्वारा लिया गया कालिंगजिन सहित अंग और मगध से अतुल संपदा ले आये थे । हाथीगुम्फा अभिलेख में उल्लिखित नंदराज निशिचत रूप से महापद्म नंद हैं। उल्लिखित “तिवस सत" का अर्थ है तीन सौ । इस सिद्धांत में उपनीत होने के पश्चात खारवेळ का समय निर्णय Jain Education International ५९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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