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________________ यथार्थ में डॉ. साहू ने कहा है कि इसमें मौर्य संबत की परिकल्पना तक नहीं है और खारवेळ के काल निरूपण के लिये इसकी कोई भूमिका ही नहीं है। हाथीगुम्फा अभिलेख में अन्य चार कीर्तिमान राजाओं के नाम मिलते हैं। लगता है ये ही खारवेळ के राजत्व काल को निरूपित करने में अत्यंत सहायक सिद्ध होंगे। वे हैं-नंदराज, वृहस्पतिमित्र, सातकर्णी और यवन राज। यवन राज हाथीगुम्फा शिलालेख की आठवीं पंक्ति में यवनराज डिमत का नामोल्लेख है, जयस्वाल, बेनर्जी, ष्टेनकोनो [Sten konow] आदि ऐतिहासिकों का यही मत है। अभिलेख में “यवनराज' शब्द सुस्पष्ट है पर उसके परवर्ती शब्द मात्र “म” वर्ण ही है और बाकी दो वर्ण पूर्ण रूपसे विनिष्ट हो चुके हैं। उन इतिहासकारों ने कल्पना के आधार पर उसे “डिमित" पढ़ा है। एतादृश अनुमान-भित्तिक पंठन के जरिए, उस पर डिमित को ग्रीक राजा डिमेटियस मान कर खारवेळ के शासन काल को ई.पू. दूसरी सदी के प्रथमार्द्ध के रूपमें निरूपित करने का प्रयास कतई ग्रहणीय नहीं हो सकता। वृहस्पति मित्र मगध राज वृहस्पति मित्र ने [बहसतिमित] पराजय स्वीकार कर खारवेळ की पद वंदना की। यह विवरण हमें हाथीगुम्फा अभिलेख की १२ वीं पंक्ति से मिलता है। उपरोक्त वृहस्पति मित्र को सुंग वंश के शासक पुष्यमित्र सुंग के रूप में काशीप्रसाद जयस्वाल ने चिन्हित किया है। पुष्यमित्र ई.पू. १८५ में मगध में सुंग शासन के स्थापयिता हैं। इससे उनका असाधारण पाण्डित्य की सूचना अवश्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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