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________________ + उनके मतानुसार अशोक की कलिंग पर विजय प्राप्ति यानि ई.पू. २५५ से मौर्य संबत का प्रारंभ हुआ है. अतः खारवेळ का सिंहासन आरोहण का वर्ष ई. पू. १०३ होगा [ ( २५५ - १६५ ) १०३ होगा [ ( २५५ - १६५ ) + १३ ] । यद्यपि काशीप्रसाद जयस्वाल और राखालदास बेनर्जी ने इंद्रजी के द्वारा प्रस्तुत पाठ के कुछेक अंश से सहमत हुए नहीं है, तब भी उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य के राज्याभिषेक वर्ष [ ई.पू. ३२२] से मौर्य संबत का प्रारंभ बताया है और उसीके अनुसार ई. पू. १७० को खारवेळ का सिंहासनारोहण वर्ष माना है [ ( ३२२ - १६५ ) १३ ] | अब यह प्रश्न का उठना स्वाभाविक है कि भारत में मौर्य संबत के नाम से कभी भी किसी संबत का प्रचलन हुआ था क्या ? इस संदर्भ में अब तक किसी शिलालेख या ग्रंथ से कोई तथ्य नहीं मिलता। यहां तक कि मौर्य वंशीय नरपति चंद्रगुप्त और अशोक तक ने भी इस संबत का उल्लेख कहीं भी किया नहीं है। ऐसा एक भी दृष्टांत उपलब्ध नहीं है। इस दृष्टि से खारवेळ सरीखे, मगध के प्रति सदा प्रतिशोध परायण, कलिंग के स्वाधीन और चक्रवर्ती विरूद-विमण्डित सम्राट का, वह भी मगध का मौर्य आधिपत्य का भारतवर्ष से अस्तमित हो जाने के पश्चात, अपने अभिलेख में "मौर्य संबत " को अपनाने की कल्पना तक नहीं की जासकती। यह भी परवर्ती काल में प्रमाणित हो चुका है कि हाथीगुम्फा अभिलेख की १६ वीं पंक्ति में कहीं भी "मौर्य संबत " का उल्लेख नहीं है। उस पंक्ति में स्पष्ट रूप से मुरिय काल" उत्कीर्णित हुआ है। पर वह मौर्य संवत नहीं मौर्य शासन को सूचित करता है। पाठकों की जानकारी के लिये १६ वीं पंक्ति के वही संदर्भित अंश का पाठ फिरसे नीचे प्रदत्त है : 66 मुरिय काल वोछिनं च चोयठि अंग संतिकं तुरियं उपादयति [ 1 ] ( चित्र. १३) अर्थात- मौर्य काल में व्यवच्छिन्न हुए चौसठ अंगयुक्त तौर्यत्रिक (नृत्य, संगीत, वादित्य) का उन्नयन करवाया । Jain Education International ५७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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