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परिशिष्ट - २
खारवेळ का शासन काल
खारवेळ के शासन काल के बारेमें निश्चित रूप से कुछ कह पाने के लिए अथवा उसका संतोषप्रद समाधान के लिये हमें भारत तथा ओड़िशा इतिहास के संकलनों पर निर्भरशील होना ही होगा । पर नाना मुनर्यो मतर्यो विभिन्नाः यही विडम्वना है।
सम्राट खारवेळ के काल के बारे में राजेद्रलाल मित्र का मत है ई. पू. चौथी सदी, जब कि फ्लिट् ( Fleet ) और ल्युदर (H Lüder) के अनुसार वह ई. पू. तीसरी सदी है । भगवानलाल इंद्रजी, काशीप्रसाद जयसवाल, राखालदास बेनर्जी आदि इतिहासकारों के अनुसार वे ई. पू. दूसरी सदी के हैं। एक ओर रमाप्रसाद चंद, हेमचंद्र रायचौधुरी, नगेन्द्रनाथ घोष, दीनेशचन्द्र सरकार और नवीनकुमार साहू हैं जिन्होंने अपने तर्कों के आधार पर इस कालखण्ड को ई. पू. पहली सदी बताया है। लगभग एक सौ वर्षों से इस समस्या के हल के लिए तर्क और ऐतिहासिक विवाद चला आ रहा है।
खारवेळ ने अपने अभिलेख में अपने पूर्ववर्ती नंद और मौर्य शासन का स्पष्ट उल्लेख किया है। पुनश्च ई. पू. चौथी सदी में नंद वंश और तीसरी सदी में मौर्य सम्राट अशोक ने कलिंग पर विजय पायी थी । इन्हीं निश्चित और सुदृढ प्रमाण के रहते उसी कालखण्ड में खारवेळ की उपस्थिति की कल्पना तक नहीं की जा सकती । जिन इतिहासकार और लिपिविद विद्वानों ने खारवेळ को ई.पू. दूसरी सदी में अवस्थापित किया है, उनके प्रमुख तर्कों की समीक्षा एकांत रूप से आवश्यक है।
सब से पहले भगवानलाल इंद्रजी ने हाथीगुम्फा अभिलेख की १६ वीं पंक्ति का पाठ प्रस्तुत किया। उन्होंने अपनी व्याख्यानुसार खारवेल के राजत्व के त्रयोदश वर्ष को संबत १६५ बताया है।
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