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परिशिष्ट-१
क्षुद्र ब्राह्मी अभिलेख:
खारवेळ के हाथीगुम्फा शिलोलख के अतिरिक्त उदयगिरि खण्डगिरि के गुफाओं में अब ब्राह्मी लिपि में खोदित तेरह अभिलेख पाए गये हैं। ये अभिलेख सब से पहले मार्खम किटो के द्वारा सन्. १८३७ में आविष्कृत हुए थे। प्रोफेसर राखाल दास बेनर्जी ने इसे Ep. Ind. Vol. XIII और डॉ. वेणीमाधव बरूआ ने I.H.Q Vol. XIX में इन्हें संपादित कर के प्रकाशित किया था। ऐतिहासिक डॉ. नवीन कुमार साहू ने स्वरचित अंग्रेजी ग्रंथ “खारवेल" [१९८४] में पुनः संपादित कर प्रकाशित किया। उन अभिलेखों का सही पाठोद्धार
और व्याख्या फिरसे दे रहे हैं। साधारण पाठकों की सुविधा के लिये अस्पष्ट वर्गों के लिये वर्तनी का प्रयोग नहीं किया गया है।
१- मंचपुरी गुम्फा अभिलेख - (ऊपरी खण्ड):
पंक्ति-१- अरहंत पसादाय कलिंगानं समनानं लेनं कारितं राजिनो ललाकस पंक्ति-२- हथिसिहस पपोतस धतुना कलिंग चकवतिनो सिरिखारवेलस पंक्ति-३- अगमहिसिना कारितं [1]
भावानुवाद
अर्हतों के आशीर्वाद से चक्रवर्ती सम्राट श्री खारवेल की अग्रमहिषी ने, जो हथीसिंह [हस्ती सिंह] की प्रपौत्री और ललाक [ललार्क] की दुहिता थीं। कलिंग में श्रमणों के लिए इस गुफा का खनन करवायाथा। पादटीका- हाथीगुम्फा अभिलेख में इन्हीं अग्रमहिषी को वजिरघरराणी के रूप में अविहित किया गया है।
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