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गांधर्ववेद प्रवीण महाराज खारवेळ की दक्ष पृष्ठपोषकता से ये कलाएं सदा पल्लवित होती रहीं। आदि कवि वाल्मीकि ने यथार्थ में कहाहै कि राजानुग्रह के बिना ये राज्य के हितकारी नृत्य संगीत आदि कलाओं का वर्द्धन असंभव है।
नाट्यविशारदों के मतानुसार राणीगुम्फा में एक प्रेक्षागृह का निर्माण हुआ था। राणीगुम्फा का यह रंगमंच निश्चित रूप से एक शास्त्रसम्मत प्रेक्षागृह है। कुछ विद्वानों का मत है कि यह प्रेक्षागृह भरतमुनि प्रणीत नाट्यशास्त्र के अनुसार बना था। पर यह मत ग्रहणयोम्य नहीं है। हो सकता है कुछ समानता हों। क्योंकि इस रंगमंच का निर्माण ई.पू. पहली सदी में हुआ था जबकि नाट्यशास्त्र की रचना काल ई. पहली- तीसरी सदी है। राणीगुम्फा की गठनशैली और कलात्मकता के आधार पर यह निश्चित रूपसे कहा जासकता है कि तत्कालीन भारतवर्ष में यह एक भव्य रंगमंच था। खारवेळ के राजत्व काल में कलिंग के शिल्पियों ने उस समय की उन्नत संगीत नृत्य परंपरा के कालजयी आलेख्य के रूप में उदयगिरि और खण्डगिरी के पत्थरों पर जो उत्कीर्णित कर गये हैं उससे अनंत काल तक भविष्य के कलानुरागी अनुप्राणित होते रहेंगे, इस में द्विमत होने की क्षीणतम शंका भी नहीं है।
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