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________________ गले में हार, दाहिने पग में जान पड़ती हैं। दो के हाथ में वीणा और बाँसुरी है। इस चित्र को देख कर अपने आप नंदीकेश्वर के उस श्लोक का स्मरण हो जाता है : पगों में पायल, हाथों में कोई अर्थपूर्ण मुद्रा और ताल- विन्यास है। चार नारियां हैं जो एक्यतानिकाएं एक मृदंग, एक तबले की भांति कोई वाद्य, बाकी अभिनव जीवंत नर्तन 'अभिनय - दर्पण' का आस्येनालम्वयेद गीतं हस्तेनार्थ प्रदर्शयेत् । चक्षुर्भ्या दर्शयेद भावं पादाभ्यां तालमाचरेत ॥ ( चि. १०) इस चित्र में नारियों के द्वारा मृदंग और तबला सदृश किसी वाद्य का वादन तात्पर्यपूर्ण है। क्यों कि नाट्यशास्त्र में भरत मुनि ने नारियों के द्वारा इन वाद्यों का वादन निषेध बताया है। इसलिए कि इस वादन हेतु समीचीन शक्ति और श्रम आवश्यक है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि भरत मुनि के पूर्व काल में नारियाँ भी ये वाद्य भी बजाया करती थीं तथा राणीगुम्फा का वह चित्र भरत मुनि के पहले का है। राणीगुम्फा के ऊपर के खण्ड में भी अलग-अलग भंगिमा में नृत्य करती दो कृशांगी तरुणियों के चित्र है। वहां भी स्वर-संगम के लिए तीन नारियां मृदंग, करताल और वीणा लिए हैं। पर निचले खण्ड के चित्र की भांति इसमें रंगमंच नहीं है । उपरोक्त दोनों नृत्य-संगीत समारोह में अपने दोनों महिषियों के साथ बैठे खारवेळ तन्मय मुद्रा में रसास्वादन करते दर्शाये गये हैं । ततोवागुम्फा [ नं. २] में नृत्य का एक और जीवंत चित्र है। एक वृक्ष के नीचे एक नारी नाच रही है। कोई पुरूष वीणा बजा रहा है। उनके वेश भूषण, विशेषकर केश विन्यास अत्यंत चित्ताकर्षक है । वीणा की बनावट भी चमत्कृत करती है ( चि. क्र. ११) । उस समय कलिंग में नृत्य-संगीत कला की शीर्षता का साक्ष्य प्रदान करते हैं खारवेळ के अभिलेख और शिलांकित चित्रावलियां । Jain Education International ५० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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