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________________ - कहा जाता था। राणीगुम्फा के उपरी हिस्से की दाहिनी और बने प्रकोष्ठ के सामने द्वारपाल के रूपमें खड़े दो राजपुरुष उन दौवारिकों से कुछ भिन्न से जान पड़ते हैं। उनके वेश भूषण और रोब से वे दोनों साधारण प्रहरियों से उच्च पदाधिकारी लगते हैं। उस पर वे दोनों एक ही वर्ग के लगते नहीं है। संभवतः उनमें से एक है प्रतिहारी और दूसरा नायक है। प्रतिहारी के सर पर पगड़ी है । उसने धोती बांध रखी है। लंबोदर तथा अस्त्ररहित नंगेपांव खडा है। जब की नायक [ या सेना नायक ] ने सलवार अचकन पहन रखा है। सर पर पगड़ी है। बूट नुमा जूता पहन रखा है। कमर में तलवार झुलाए दर्प से खड़ा है। राणीगुम्फा के निचले खण्ड़ के मध्य भागके प्रकोष्ठों में खारवेळ के दिग्विजय की जो चित्रावली उत्कीर्णित हुई हैं उनमें सम्राट के साथ कुछेक पदस्थ कार्यकर्ता भी हैं । सेनापति के हाथ में एक लंबी तलवार है और घोड़े पर सवार होकर, पीठ पर सैनिकों के लिये खाद्य की व्यवस्था हेतु पात्र लटकाए चलनेवाले कार्यकर्ता 'भाण्डागारिक" कहलाते थे। सैनिकों के लिये विजय अभियान के समय खाने का प्रबंध करना उनका काम था । इनमें से अनेक अब विनष्ट हो चुके हैं पर जो भी है उसमें से उन दोनों राजपुरुषों को तथा छत्र - चामर शोभित सम्राट खारवेळ को सहज ही पहचाना जा सकता है | ( चि. क्र. ६) । यह सुनिश्चित है कि खारवेळ के समय इन कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त और भी अनेक पदाधिकारी रहे हेंगे। पर उनके विवरण प्रदान करने के लिए आजतक कोई प्रत्नतात्विक प्रमाण उपलब्ध नहीं हे पाया है। साम्राज्य में सुख और शांति की प्रतिष्ठा और संवृद्धि के लिये ही खारवेळ का शासन अभिप्रेत था इसकी स्पष्ट सूचना हमें उनके शिलालेख और शिलांकनों से प्राप्त होजाती है । हाथीगुम्फा शिलालेख के अंतिम अंश की घोषणा [भावानुवाद पं. १६ - १७ द्रष्टव्य ] खारवेळ के गुण और सामर्थ्य ही को उद्घोषित करती है । Jain Education International ४४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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