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________________ अभिलेख में "नगरअखदंस” भूतिका नाम है। उस समय नगर के विचारपाति अथवा न्यायाधीश को 'नगर अरखदंस' कहा जाता था । संभवतः वे ही साम्राज्य के विचार विभाग के मुख्य माने जाते थे । अशोक के समय इस पद को " नगर वियाहालक" और अर्थशास्त्र में, "नागरिक महामात्र " के नाम से नामित किया गया है। खारवेळ के समय " पादमूलिक" एक और राजपुरुष हुआ करते थे । उस समय यही पदनामधारी राजपुरुष कलिंग के संलग्न क्षेत्रों में भी नियुक्त थे, इसकी जानकारी हमें किरारि स्तंभ अभिलेख से प्राप्त होती है। खण्डगिरि के ततुआ गुंफा अभिलेखसे यह भी ज्ञात होता है कि खारवेळ के समय कलिंग के पादमूलिक के रूप में कुसुम नामक एक व्यक्ति अवस्थापित होकर था । युद्ध और शांति दोनों समय राजा के समीप रह कर पादमूलिक दूसरे कार्यकर्ताओं में एक विशेष आसन के अधिकारी माने जाते थे। उस समय इन पदों के अतिरिक्त कलिंगके अन्य पदासीनों के बारे में हाथीगुम्फा या और किसी अभिलेखों से हमें कोई जानकारी नहीं मिलती है। फिरभी खण्डगिरि और उदयगिरि गुंफा में कुछेक अन्य कार्यकर्ताओं की मूर्तियां है, जिनके बारे में डॉ. साहू का कहना है: "राणीगुम्फा के नीचले खण्ड में दाहिनी ओर के गुम्फाके सामने एक पादुकाविहीन, दण्ड- पाशधारी दण्डायमान दीर्घकाय व्यक्ति की मूर्ति है। नि:संदेह उसे उस समय के 'दण्डपाशिक' उपाधिधारी पुलिस कार्यकर्ता कहा जा सकता है। उस समय राजप्रासाद, विभिन्न संस्था और अधिकरणों में दौवारिकों के द्वारा किस भांति सुरक्षा कार्य का संपादन हुआ करता था उसका अनुमान उदयगिरि के राणीगुम्फा के दोनों खण्डों में, मंचपुरी गुम्फा के निचले खण्ड, जय विजय गुम्फा में तथा खण्डगिरि के ततोवा गुम्फा के निचले खण्ड में बनी अस्त्रधारी दौवारिकों की मूर्तियों से लगता है कि इनका काम पहरा देना ही था । " दौवारिकों" के काम की निगरानी 'प्रतिहारी' किया करते थे और उनके ऊपर के अधिकारी को नायक या सेना-नायक Jain Education International ४३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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