SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पर यह निश्चित रूप से स्वीकारणीय और गौरव की बात है कि, खारवेळ के पश्चात इस धर्म की पृष्ठेपोषकता के लिये किसी और राजवंश के न होने के बावजुद अबभी ओडिशा में एक विशेष संप्रदायने अपने को जैनधर्मावलंबी के रूप में अभिहित कर प्राचीन कलिंग का एक राष्ट्र धर्म को उज्जीवित कर रखा है। खारवेळ कालीन शासन और समाज: कौटिल्य के अर्थशास्त्र ने भारतवर्ष की शासन धारा को दीर्घ काल तक प्रभावित कर रखा था। खारवेळ की शासन-विधि पर विचार आलोचना से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि, उनके द्वारा भी अनेकांशों में अर्थशास्त्र की पद्धतियां अपनायी गयी थीं। उनके प्रशासनिक कार्यकर्ताओं का परिचय खण्डगिरि और उदयगिरि के कुछेक अभिलेखों से प्राप्त होता है। उस समय नाकीय “महामद" की पदवी से अलंकृत हुए थे। उनकी पत्नी का नाम था बारीया। ये दोनों पति-पत्नी ने जैन अर्हतों को जमेश्वर गुंफा समर्पित किया था। मुख्यमंत्री को महामद कहा जाता था। अशोक के समय यह पदवी “महामात्र" नामसे नामित हुई थी। कुछेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि उस समय भारतवर्ष में “कर्म सचिव" और "मति सचिव” नामसे पदस्थ राजपुरूष विभिन्न प्रांतों में नियुक्त हुए थे। खारवेळ के शासन में “मति सचिव" नहीं थे पर कर्म-विभाग के अधिकारी “कर्म सचिव" की सूचना हमें मिलती है। कर्म सचिव को उस समय “कम्म" कहा जाता था। उनके सहयोगी को “चुल कम्म' के नामसे जाना जाता था। दुर्ग, प्रासाद आदि का निर्माण, कूप, सरोवर आदि का खनन, पर्वतों में गुम्फा आदि बनाने के काम से शायद उनकी नियुक्ति हुआ करती थी। सर्पगुम्फा अभिलेख में “कम्म" और हरिदास गुम्फा अभिलेख में “चुलकम्म", ये दोनों पदवियां उल्लिखित हुई हैं। उदयगिरि व्याघ्रगुंफा ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy