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________________ हाथीगुम्फा अभिलेख की सप्तदश पंक्ति में खारवेळ ने अपने को सभी धर्मों के मूर्ति पूजक और समस्त देवायतनों के संस्कारक के रूप में किया है जिसकी यथार्थता इस भांति उनकी कार्यावली से स्पष्ट रूपसे प्रतिपादित हो जाती है । खारवेळ के परवर्ती ओडिशा में जैन धर्म अब तक खारवेळ के परवर्त्ती वंशधरों के विस्तृत विवरण प्राप्त हुए नहीं हैं। उनके राजत्व काल में कलिंग में जैनधर्म की क्या स्थिति थी, उस संदर्भ में भी कोई तर्क सम्मत विस्तृत प्रमाण या प्रत्नतात्विक विवरण अभी तक मिला नहीं है। खारवेळ के पश्चात ओडिशा में जैनधर्मी पारंपरिक अनुष्ठानों के बारे में भी कोई विशेष जानकारी नहीं है। फिरभी, जो उपलब्ध है, उनमें से एक का आधार है जैन-ग्रंथ " अभिधान राजेंद्र " । इस ग्रंथ के अनुसार तोषली विषय के सेलपुर में 'ऋषि तड़ाग' नाम से जैनियोंका एक पवित्र सरोवर था जहाँ हर वर्ष एक आठ दिनों का उत्सव समारोह हुआ करता था: “आदेसो सेलपुरे आदाणट्ठहिया हिआय महिमाए तोसलिविस विण्णवणठातह होति गमणं वा । सेलपुरे इसित लागम्म होति अट्ठाहिया महामहिमा कोंडलमेत्त पभासे अववुय पाइण वाहम्मि ॥ सरस्वती नदी के साथ मिली प्राचीनवाह नदी के तट पर आनंदपुर के वासियों के द्वारा वह उत्सव मनाया जाता था, उस ग्रंथ में इसका भी उल्लेख हुआ है। स्वर्गीय पंडित वानाम्बर आचार्य ने सरस्वती नदी को [ ब्रह्मा - तनया] ब्राह्मणी नदी और प्राचीनवाह नदी को वैतरणी माना है। आंनदपुर को आधुनिक केंदुझर जिला के आंनदपुर के रूप में चिन्हित किया गया है। आनंदपुर के निकटस्थ पोडसिंगाड़ि, बइदाखिआ, सोसे आदि स्थलों से जिन जैन अवशेषों Jain Education International ३९ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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