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अंग और मगध के राजा वृहस्पतिमित्र [वहसतिमित] ने पराजय स्वीकार किया था। इस विजय के द्वारा कलिंग को अपनी दो बार की पूर्व पराजय के प्रतिशोध की संतुष्टि मिली थी। खारवेळ के तीन सौ वर्ष पूर्व महापद्म नंद ने कलिंग पर आक्रमण करके कलिंग से धनरत्नों के सहित जिन प्रतिमा को भी बलपूर्वक मगध ले आए थे। मगध विजय के पश्चात खारवेळ ने कलिंग जिन प्रतिमा के साथ अपार धन संपदा और गौरव लेकर कलिंग आए। मगध के उस पराक्रमी शासक की शोचनीय पराजय से खारवेळ की असीम शक्ति और समर कौशल का परिचय मिलता है। खारवेळ के द्वारा कलिंग का सम्मान अभिवृद्ध होकर आकुमारी हिमाचल सर्वत्र प्रसरित हुआ था। खारवेळ की प्रथम महिषी ने अपने मंचपुरी गुंफा अभिलेख में उन्हें यथार्थतः चक्रवर्ती के रूपमें अभिहित किया है।
अभिलेखीय विवरणों के साथ -साथ उदयगिरि के राणीगुम्फा में खोदित खारवेळ के सफल सामरिक अभियान की चित्रावली के द्वारा भी उनका सामर्थ्य प्रदर्शित हुआ है। राणीगुंफा के निम्नांश के सम्मुख भाग के चार प्रकोष्ठों के शीर्षदेश पर ये दीर्घ चित्रावली खोदित हुई हैं। इन्हें विश्लेषित करते हुए इतिहासकार डॉ नवीन कुमार साहू बताते हैं: (चि.क्र.-४क-ख)
“चित्रावली के प्रारंभ में कलिंग सेना राजधानी कलिंग नगरी के राजपथ पर युद्ध के लिये जारहे हैं और अट्टालिकाओं पर, बरामदा तथा गवाक्षों में खड़े होकर जनता द्वारा शुभेच्छार्पण के दुश्य अंकित है। चित्रों के अनेकांश अब संपूर्ण ध्वंस हो चुके हैं। फिरभी जो कुछेक अविकृत अवस्था में हैं उनसे सम्राट के द्वादश वर्षों की दिग्विजय यात्रा की जानकारी प्राप्त होती है। जिसमें किसी राजा के नतजानु होकर खारवेळ की पद-वंदना करते दिखाया गया है-वह मगधराज वृहस्पति मित्र का आत्मसमर्पण का चित्र है। उसमें राजछत्र शोभित सम्राट खारवेळ हैं, उन्हीं के आगे नतजानु होकर प्रणिपात करते हुए मगधराज के शिरस्त्राण नहीं है। समीप
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