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सामरिक यात्रा की और अनेक राजाओं को परास्त किया। अतुल धन रत्नों के साथ राजत्व के ग्यारहवें वर्ष में कलिंग को लौटे। हाथीगुंफा शिलालेख में पराजित राजाओं के नाम नहीं है, केवल पराजित और पलायमान राजाओं से मणि रत्न लाभ का वर्णन है। अतः इस परिप्रेक्षी में पराजित राजाओं के सही विवरण प्रदान करना संभव नहीं है।
उसी एकादशवें वर्ष दक्षिण में स्थित द्रमिल राष्ट्र संघ के . साथ भीषण युद्ध का प्रारंभ हो चुका था। वर्णित राष्ट्रसंघ चोल, पाण्ड्य, सत्यपुत्र, केरलपुत्र और ताम्रपर्णी [सिंहल] के राजाओं को लेकर खारवेळ के समय से तेरहसौ वर्ष पूर्व संगठित हो दीर्घकाल से एक अजेय शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित होकर था। नंदराजा महापद्म नंद या मौर्य राजा चंद्रगुप्त और अशोक ने भी इस संघ पर विजय प्राप्त नहीं कर सके थे। यह युद्ध दोनों जल और स्थल भागों में हुआ था। हाथीगुंफा शिलोलख [पं.१३] से यह सूचना मिलती है कि इस युद्ध में खारवेळ को असंख्य अद्भुत क्रियाशील हाथी और युद्ध पोत खोने पड़े। पर अंत में उन्हेंही विजयश्री प्राप्त हुई और पाड्य राजा [संभवतः तामिल संघ के प्रमुख ने खारवेळ को अनेक मणि माणिक्य उपहार स्वरूप प्रदान करके अधीनता स्वीकार किया था। इसीसे तामिल संघ का अवसान हुआ।
द्रामिल युद्ध के अवसान के पश्चात खारवेळ ने पुनर्वार उत्तर भारत की ओर युद्ध यात्रा की। राजत्व के बारहवें वर्ष में उन्होंने एक लाख की सेना लेकर गांगेय पठार अतिक्रमण करके उत्तरापथ तक अग्रसर हुए थे। फलस्वरूप उत्तरापथ के अनेक शासक संत्रस्त हुए। उस अभियान के समय खारवेळ ने मगध राज्य में गंगा नदी के तट पर असंख्य हस्ती और अश्वों के साथ शिविर की स्थापना की थी। उन हस्तियों को गंगा में जलपान करते हुए देख कर मगधवासियों के मन में अपार भय संचारित हुआ था। बाध्य होकर
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