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निवास अवस्थित थे। और उस क्षेत्र में साठ नगरों की प्रतिष्ठा हई थी। खारवेळ के परवर्ती कालके अभिलेखों से उन अष्टादश विद्याधर राज्यों की अवस्थिति की जानकारी प्राप्त होती है। अति प्राचीन कालसे वह कलिंग के लिये सेना संग्रह की भूमि थी। कुरूक्षेत्र युद्ध में कलिंग की जिस शवर और पुलिंद सेना ने अपने असीम वीरत्व का प्रदर्शन किया था वे यही विद्याधर/आटविक क्षेत्र के हैं। ऐसा अनुमान लगाया जाता है। खारवेळ ने भी अपने अभिलेख में विद्याधर क्षेत्र को “अहत पूर्व' अर्थात पहले कभी पराजित न होनेवाला क्षेत्र के रूप में उल्लेख किया है।
विद्याधर राज्य के सैन्यबल को संगठित करके खारवेळ ने अपने राजत्व के चौथे वर्ष सातवाहन राज्य के विरूद्ध द्वितीय बार युद्ध के लिये प्रस्थान किया था। इसके पहले ही राजा सातकर्णी की मृत्यु हो चुकी थी और उनके दोनों पुत्र, वेदश्री और शक्तिश्री के नाबालिग होने के कारण विधवा रानी नयानिका पर राज्य का शासन भार न्यस्त था। रानी नयानिका ने खारवेळ के आक्रमण को प्रतिहत करने के लिये अपने दोनों सामंत, रथिक और भोजक क्षेत्र के शासकों को भेजा। पर खारवेळ से पराजय स्वीकार करते हुए छत्र परिहार कर, मुकुटविहीन हो मणिरत्नों सहित उनकी पद-वंदना को वाध्य हुए। सातवाहन राजवंश की शक्ति खर्वित हुई एवं फलस्वरूप कलिंग का राजनैतिक प्रभुत्व पूर्व से पश्चिम पयोधि तक विस्तारित हुआ।
इस विजय के उपरांत खारवेळ तीन वर्षों तक सामरिक अभियान से विरत हो कर जन-कल्याणकारी कार्यों में अपने को नियोजित किया था। पर लगता है कलिंग के पारंपरिक शत्रु मगध के विरूद्ध उनकी युद्ध-प्रस्तुति तब भी जारी थी। राजत्व के आठवें वर्ष ही उन्होंने सेना लेकर उत्तराभिमुख हो मगध की वृहत्तम नगरी राजगृह
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