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की चौथी पंक्ति से यह स्पष्टरूपसे प्रतिपादित होता है कि खारवेळ ने अपने राजत्व के दूसरे वर्ष ही सातकर्णी की शक्ति का भ्रूक्षेप न करते हुए “कन्हवेणा" [कृष्णावेणी] तक अग्रसर होकर असक नगरी पर आक्रमण किया था। संभवतः इस सामरिक अभियान में खारवेळ को सफलता नहीं मिली थी। और यह आद्य संघर्ष अमीमांसित रहा था। इस युद्ध की परिणति के संदर्भ में हाथीगुंफा या अन्य किसी सातवाहन वंशीय शिलालेख से कोई भी जानकारी मिलती नहीं है। पर चुल्ल कलिंग जातक में इस संदर्भ में एक चित्ताकर्षक वर्णन है। उस वर्णन के अनुसार राजा कालिंग युद्ध में पराजित होकर अपनी चार सुंदर राजकुमारियों को अस्मक के राजा अरूण को प्रदान किया था। इसी के आधार पर वेणीमाधव बडुआ ने कहा है कि उस युद्ध में खारवेळ पराजित हुए थे। यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि जातक की इस कथा की कोई ऐतिहासिक सत्यता नहीं है। क्यों कि हाथीगुंफा शिलालेख से यह स्पष्ट रूप से प्रतिपादित होता है कि उस सामरिक अभियान के समय खारवेळ की आयु मात्र छब्बीस साल की थी। उस अवस्था में चार चार युवा राजकुमारियों का जन्मदाता बनकर किसी विजयी राजा को अर्पित करने की कल्पना तक असंभव है। इसके पश्चात खारवेळ ने विद्याधर क्षेत्र के योद्धाओं को संगठित किया। अशोक के स्वतंत्र कलिंग अभिलेख में उल्लिखित आटविक राज्य और हाथीगुंफा शिलालेख में उल्लिखित विद्याधर राज्य एक है। सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के समय उन्हीं आटविक सेना की असीम शक्ति और वीरता के परिचय पाकर कलिंग पर विजय प्राप्त होने के बावजूद आटविक राज्य पर अधिकार पाने का प्रयास तक किया नहीं था। और उन्हें अविजित जाति के रूप में स्वीकार किया था। आधुनिक ओडिशा के बलांगीर, फुलवाणी और कलाहाण्डी आदि पार्वत्य क्षेत्रों को लेकर तब विद्याधर/आटविक राज्य का संगठन हुआ था। जैन ग्रंथों से यह सूचना मिलती है कि विंध्य पर्वत के समीप अठारह विद्याधर
गठित किया के पश्चात खारवेल को अर्पित
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