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क्षेत्र के रूप में जाना जाता था। पश्चिमांचल में नर्मदा और ताप्ति की अववाहिका में अवस्थित था अवंतीपथ, जहाँ ई.पू. पहली सदी में सातवाहन वंश क्षमता संपन्न होकर था। पूर्व-सूचना के अनुसार सुंग-काण्व वंश के विलीन होने के कारण अंग और मगध में मित्र राजवंश, कलिंग में चेदि राजवंश और महाराष्ट्र में सातवाहन राजवंश का अभ्युदय हुआ था और सार्वभौमत्व के लिये इनमें संघर्ष अनिवार्य था। ई.पू. पहली सदी के द्वितीयार्ध में मित्र वंश के वृहस्पति, चेदि वंश के खारवेळ और सातवाहन वंश के सातकर्णी अधिक शक्तिशाली थे। इन्हीं त्रिशक्तियों के संघर्ष में खारवेळ की भूमिका अत्यंत गौरवमय थी।
हाथीगुंफा शिलालेख की चौथी पंक्ति से यह स्पष्ट रूपसे प्रमाणित होता है कि कलिंग की विशाल सेनावाहिनी चतुरंग बल से अर्थात पदातिक, अश्वारोही, गजारोही और रथारोही सैन्यों से बनायी गयी थी। पुनश्च तेरहवीं पंक्ति से यह भी ज्ञात होता है कि उस सेना में अद्भुत क्रियाशील हाथी और युध्द पोत भी थे [अभूत मछरियं च हाथीनाव]। सत्रहवीं पंक्ति में खारवेळ अप्रतिहत सेनाबल के अधिकारी के रूप में वर्णित हुए हैं।
जब खारवेळ कलिंग के सिंहासनासीन हुए तब भारत के पश्चिमांचल में सातवाहन वंशी राजा सिमुक के पुत्र सातकर्णी का शासन था। यहां उल्लेखनीय है कि सातवाहन और मेघवाहन दोनों एक ही समय में भारत के पश्चिमांचल और कलिंग पर अधिकार प्राप्त होकरके दाक्षिणात्य में अपने प्रभाव विस्तार करने को तत्पर थे। उस समय सातकर्णी ने स्वयं आधुनिक महाराष्ट्र के शासक होने के बावजूद अपने को दक्षिणापथपति के रूप में घोषित किया था। अतः अपनी शक्ति और समर्थता की प्रतिष्ठा के लिये खारवेळ ने सबसे पहले सातवाहन के राज्य पर आक्रमण किया था। हाथीगुंफा शिलालेख
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