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अर्थात् अराजक देश में राष्ट्रको उन्नतिशील बनानेवाले उत्सव, जिनमें नट और नर्तक हर्ष में भर कर अपनी अपनी कलाओं का प्रदर्शन करते हैं, बढने नहीं पाते तथा अन्यान्य राष्ट्र हितकारी संघ भी नहीं पनपने पाते । ।
हाथीगुम्फा शिलालेख में खारवेळ का क्रीडा और संगीत के प्रति प्रगाढ़ अनुराग की स्पष्ट सूचना है। अभिलेखों के अतिरिक्त उदयगिरि और खण्डगिरि के विभिन्न गुफाओं में खोदित चित्रों में भी उस समय के नाट्यानुराग का चित्रण है। उस पर स्वतंत्र रूप से इसी ग्रंथ में आलोचना है।
सामरिक कृतित्वः
खारवेट के दिगदि । के प्रसंगों पर आलोचना के पहले भारत का तत्कालीन राजनैतिक मानचित्र के संदर्भ में जानना आवश्यक है। उस समय आहिमाद्री कुमारिका विस्तृत क्षेत्र को भारतवर्ष कहा नहीं जाता था। वस्तुतः भारत के प्राचीन अभिलेखों में खारवेळ के हाथीफा अभिलेख में ही भारतवर्ष का आद्य नामोल्लेख हुआ था [भर र पठानं महीजयनं - पं.१०]। उस समय उत्तर भारत में गंगानदी के तटवर्ती क्षेत्र को ही मुख्यतः भारतवर्ष के रूपमें अभिहित किया जाता था। सिंधु नदी के तटवर्ती क्षेत्र उत्तरापथ के नाम से नामित था। विंध्य पर्वत के दक्षिण में था दक्षिणापथ
और उससे दक्षिण की ओर द्रमिल देश अवस्थित था। वही द्रमिल देश अनेक राज्यों के सम्मेलन से एक राष्ट्रसंघ के रूप में लगभग तेरह सौ वर्ष पूर्व ही संगठित हुआ था [ई.पू. १३००], हाथीगुंफा शिनाख से इसकी भी सूचना मिलती है। कलिंग राष्ट्र भारत के साल में गंगा से गोदावरी तक विस्तृत था और उससे संलग्न
विद्याधर] राज्य पश्चिम दिशा में विंध्य पर्वत के पार्श्ववर्ती
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