SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ का अवरोध किया था । राजगृह की प्रतिरक्षा के लिये गोरथ गिरि पर निर्मित गोरथ गिरि दुर्ग कलिंग सैन्यों के आक्रमण से विध्वंसित होने की सूचना हमें हाथीगुंफा शिलोलख [ पं. ७, ८] से प्राप्त होती है। उक्त शिलालेख में मगध का नामोल्लेख नहीं है फिरभी गोरथ गिरि नाम के होने के कारण यह स्थान मगध की राजधानी के रूप में ही जाना जाएगा। क्यों कि मगध की राजधानी के समीप ही गोरथगिरि था, यह महाभारत के एक वर्णन से स्पष्ट हो जाता है । जरासंध वध के लिए श्रीकृष्ण, अर्जुन और भीम ने मगध की यात्रा की थी। उन्होंने गोरथगिरि पर खड़े होकर मगध की राजधानी को देखा था : ते शब्द गोधनाकीर्णमम्बुमन्तं शुभद्रुमम् । गोरथगिरिमासद्य ददशुर्मागिधं पुरम् । [ सभा २० / ३० ] अर्थात सदा गोधन से भरेपूरे, जलसे परिपूर्ण तथा सुंदर वृक्षों से सुशोभित गोरथ पर्वत पर पहुंच कर उन्होंने मगध की राजधानी को देखा। आधुनिक बराबर पर्वत को उपरोक्त गोरथगिरि के साथ संतोषजनक रूपसे परिचिन्हित किया गया है। यहाँ लोमश महर्षि और सुदामा गुफा के साथ साथ सम्राट् अशोक का एक अभिलेख भी है। इनके अतिरिक्त, ब्राह्मी लिपि में खोदित दो छोटे छोटे अभिलेख भी हैं। पहला अभिलेख अशोककालीन ब्राह्मी में " गौरथ गिरि" और दूसरा परवर्ती ब्राह्मी लिपि में “ गौरधगिरि" के रूपमें उत्कीर्णित है । द्वितीय अभिलेख की लिपि और खारवेळ के हाथीगुंफा अभिलेख की लिपि में समानता के आधार पर बेनर्जी महोदय ने इसे खारवेळ के सामरिक अभियान के समय साथ आए किसी व्यक्ति के द्वारा उत्कीर्णित अभिलेख बताया है। हाथीगुंफा शिलोलख में भी गोरथ Jain Education International २८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy