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________________ 66 उन्हें नाबालिग अवस्थामें ही युवराज की पदबी मिली थी और उन्हेंने दूसरों की प्रशासनिक सहायता से राज्य का शासन किया था। इस भांति की शासन विधि को प्राचीन जैनग्रंथ आयारंग सुत्त” में “ युवराज्यानि" के रूप में उल्लेख किया गया है। प्राचीन काल में राजाओं के अकाल वियोग की स्थिति में नाबालिग युवराजों को सिंहासनासीन करके राजमाताओं के द्वारा राज्य शासन के अनेक दृष्टांत हैं। पर हाथीगुम्फा शिलालेख इसके बारे में पूर्णतया मौन है। स्थिति चाहे कुछ भी हुई हो पच्चीस वर्ष की आयु में खारवेळ ने महाराजा के रूपमें राज्य की शासन भार संभाला था । अभिलेखीय विवरण और उदयगिरि खण्डगिरि में उत्कीर्णित चित्रावली से यह प्रतिपादित होता है कि खारवेळ की दो रानियां थीं। संभवतः उनके अभिषेक उत्सव के समय उनका प्रथम विवाह हो चुका था । हाथीगुम्फा अभिलेख में इन्हीं महिषी को वजिरधर रानी के रूप में अभिहित किया गया है। उपरोक्त वजिरधर को आधुनिक मध्य-प्रदेश स्थित जबलपुर के समीपवर्ती "बेरागढ़" के रूप में चिन्हित किया गया है। इन्हीं महिषी का परिचय मंचपुरी गुफा अभिलेख से भी प्राप्त होता है। उसमें उन्हें राजा ललार्क की दुहिता बतलाया गया है । राजा ललार्क राजा हस्तीसिंह के प्रपौत्र थे । अतः अभिलेख से ललार्क के पिता और पितामह के बारे में भी कुछ पता नहीं चलता। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अन्य समसामयिक अभिलेख में भी ये दोनों नाम नहीं पाए गये हैं । अतः " वजिरधर रानी" के पितृकुल की जानकारी दे पाना असंभव ही है । हाथीगुम्फा अभिलेख में द्वितीय महिषीको सिंहपथ - राणी के नामसे नामित किया गया है। सिंहपथ को आधुनिक आंध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिला के सिंगुपुरम के रूपमें चिन्हित किया गया है। ई. चौथी सदी में माठर राजवंश के राजत्वकाल में सिंहपुरम ही कलिङ्ग की राजधानी थी, यह भी महत्वपूर्ण है । खारवेल ने किन परिस्थियोंति Jain Education International १८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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