SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खारवेळ का व्यक्तिगत इतिहास “खारवेल" शब्द का अर्थ शायद समुद्र या समुद्र-वेष्ठित देश है। संस्कृत शद्व “क्षारवेल' का प्राकृत रूप है “खारवेल"। वह उल्लेखनीय है कि खारवेल के हातीगुम्फा शिलालेख में सर्वत्र “क्ष" के स्थान पर “ख” वर्ण का प्रयोग हुआ है। प्रख्यात भाषातत्वविद् स्वर्गीय सुनीत कुमार चाटार्जी ने खारवेळ को द्रविड बतला कर द्रविड भाषानुसार “खारवेल" का अर्थ "कृष्णकाय" बतलाया है। पर हमने इसके पूर्व आलोचना की है कि चेदि राजवंश वैदिक काल से ही एक सम्म नास्पद आर्य जाति के रूपमें स्वीकृत है। इसलिये खारवेळ को द्रविड मानना कदाचित समीचीन नहीं होगा। उसी तरह उन्हें कृष्णकाय तथा भयंकर रूपवाला भी कहा नहीं जा सकता। वे पिंगलवर्ण वपुवान रूपवंत पुरूष थे, यह हाथीगुम्फा शिलालेख ही से प्रतिपादित हो जाता है। जन्म के समय से उनके शरीर पर महामानव के लक्षणोंका होना ज्ञात था। हाथीगुंम्फा शिलालेख पं १-२]। बाल्यावस्या में खारवेळ के उन्मुख व्यक्तित्व के विकास के लिये विशेष प्रयत्न हुआ था। विविध क्रीड़ओं के माध्यम से शिक्षारंभ होकर पंद्रह वर्ष की आयु तक वे लेखन [राजकीय पत्रालाप] रूप [मुद्रा-विज्ञान] गणना [गणित ज्ञान] व्यवहार [न्याय] विधि [प्रशासनिक और सभी विद्याओं में निपुण हो गये थे। ____ हाथीगुम्फा अभिलेखसे यह स्पष्ट होजाता है कि खारवेळ पंद्रह वर्ष की अवस्था में युवराज पद पर अधिष्ठित हुए थे। परंतु उन्हें किसने अधिष्ठित कियाथा यह इस अभिलेख से ज्ञात नहीं होता। अनुमान है, उस समय खारवेळ के पिता की अकालमृत्यु के कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003640
Book TitleKharvel
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSadanand Agarwal, Shrinivas Udagata
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year1993
Total Pages136
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy