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उन्होंने अदभुत और विस्मयकारी हाथियों और नावों को खोकर अनेक अश्व, गज, मणि - माणिक्य प्राप्त किया था। पाण्ड्यराज एक लक्ष मूल्य के मुक्ता और मणि-रत्न उपहार के रूप में लेकर वहां [कलिङ्ग नगरी को] आए थे।
पंक्ति -१४ ; उन्होंने ..... के अधिवासियों को वशीभूत किया था। तेरहवें वर्ष में राजवृत्तिधारी, झीनवासधारी, सङवासी अर्हतों के पूजक, उपासक श्री खारवेल ने विजयचक्र प्रवर्तित कुमारी पर्वत के गात्र पर सर्वत्यागी जपोद्यापक अर्हतों के शरीर विश्राम हेतु आश्रमस्थलों का खनन करवाया था।
पंक्ति - १५-१६ : सिंहपथ रानी की इच्छानुसार सम्मानास्पद अर्हतों की सुविधा के लिये तथा सभी ओर से पधारनेवाले यति, तापस, ऋषि और संघायनों के लिये उन्होंने अनेक योजन से आनीत पंचत्रिंशति लक्ष शिलाखण्डों से अहंतों के आश्रय स्थल के समीप तथा सम्मुख भाग में सुंदर हर्म्य का निर्माण किया था जिसमें पाटल-वर्ण के धरातल पर वैदुर्य खचित खंभे थे। इसके निर्माण के लिये एकशत पांच लक्ष मुद्राओं का व्यय हुआ था। उन्होंने मौर्य शासन-कालमें अव्यवस्थित चौषठ कलायुक्त तौर्यत्रिक का उन्नति-साधन किया था।
पंक्ति -१७ : इस प्रकार राज्य शासन कर, क्षेमराज, बृद्धिराज, भिक्षुराज, धर्मराज, राजर्षि वसु के दायाद, सभी विशेष गुणों का आधार, सर्वधर्म पूजक, सर्व देवायतन संस्कारक, अप्रतिहत सेना-बल के अधिकारी, साथ ही शासन चक्रधारक, नियम शृंखलाओं के रक्षक, विधियों के प्रवर्तक, महाविजयी श्री खारवेल ने सभी विषयों को देख - सुन कर तथा अनुभव कर अनेक कल्याणमय कार्य संपादन किये हैं।
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